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Thursday, September 30, 2010

नक्सली कहानी:ललक की ललक!

तेज बरसात थी.
जंगल के बीच झोपड़ी व पेँड़ोँ पर बने मचानोँ पर कुछ शस्त्रधारी युवक युवतियाँ उपस्थित थे.
कुछ शस्त्रधारी युवतियाँ!

" रानी!जेल मेँ तो 'ललक' को लेकर बेचैन थी.अब यहाँ जंगल मेँ किसको लेकर?"

"मुझे क्या ऐसा वैसा समझ रखा है?मैँ क्या लौण्डे बदरते रहने वाली हूँ?"

"अच्छा,खामोश रहो.तुम सब हमेँ नहीँ जान सकती ? अनेक लौण्डोँ से व्वहार रखने का मतलब क्या सिर्फ एक ही होता है?...और बात है इस वक्त की, इस वक्त भी मेँ ललक को ही याद कर रही थी."

" साथ ले आती उसे भी."

"मै तो उसे समझाती रही,मेरे साथ चल लेकिन.... ."

"रानी, तू तो कहती है कि वह लड़की लड़की ही नहीँ जो लड़कोँ को अपनी ओर आकर्षित न कर सके, जो लड़कोँ को अपने इशारे पर नचा न सके."
"रानी!"
झाड़ी की ओर किसी की उपस्थिति ने युवतियोँ को सतर्क कर दिया.
"कौन?"
एक युवती अज्ञात व्यक्ति पर राइफल तान चुकी थी.

दूसरी युवती ने जब उस पर टार्च की रोशनी मारी तो-

"वाह!रानी यह तो तेरा ललक है."

"सारी,ललक!"
"रानी,तेरे बर्थ डे पर यह तोहफा."

"चुप बैठ."

""" *** """

गिरिजेश की गौरी के साथ सगाई हो चुकी थी.वह गौरी जो कभी ललक से प्यार करती थी लेकिन अब....?!दोनोँ की अर्थात गिरिजेश व गौरी की शादी अब दो दिन बाद सन2018ई019 नबम्व को हो जानी थी. गिरिजेश अपने गर्ल फ्रेण्डस व ब्याय फ्रेण्डस के साथ एक म्यूजिक क्लब मेँ था.

"यार गिरिजेश, आखिर तूने गौरी को पटा ही लिया."

एक युवती बोली-
"गिरिजेश! गौरी से शादी के बाद तू करोड़ोँ की सम्पत्ति का मालिक हो जाएगा,हमेँ भूल न जाना."

"कैसे भूल जाऊँगा? आप लोग ही तो मेरी मौज मस्ती के पार्टनर हो.आप लोगोँ के बिना मौज मस्ती कहाँ? और तुझे तो मुझे अपनी सचिव बनाना ही है."

"थैँक यू!"-
युवती बोली.

" गौरी से कोई प्यार थोड़े है.उससे तो प्यार का नाटक कर शादी के बाद उसकी सारी सम्पत्ति हथियाना है,बस. प्यार तो मैँ तुझसे करता हूँ"
"......लेकिन यह बात माननी होगी कि ललक है अच्छा इन्सान."
"हूँ!इस दुनिया मेँ इन्सानोँ की क्या औकात ? औकात तो जमीन जायदाद पद की है.मेरे पास क्या नहीँ है!जमीन जायदाद , माता पिता आईएएस व यह सुन्दर शरीर.....मेरे मन मेँ क्या है ? इससे दुनिया को मतलब नहीँ ! तभी तो गौरी आज मेरी मुट्ठी मेँ है और ललक....?! ललक जैसे प्रेमी ,धर्मवान ,औरोँ का हित सोँचने वाले.....जब तक ललक को दुनिया जानेगी,वह अपनी जवानी योँ ही तन्हाईयोँ परेशानियोँ मेँ बर्बाद कर...?! मौज
मस्ती तो हम जैसोँ की जवानी करती है."
19नवम्बर2017 ई0 को ललक यादव ने अपने भाई मर्म यादव की हत्या कर दी थी.
मर्म यादव!
मर्म यादव इन्सान के शरीर मेँ एक शैतान था.
जिसका मकसद था सिर्फ अपना स्वार्थ.......एवं अपनी बासनाओँ की पूर्ति . जिसके लिए वह अन्य किशोर किशोरियोँ,युवतियोँ के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा था.

आखिर फिर......

धर्म के पथ पर न कोई अपना होता है न कोई पराया.

कुरुशान अर्थात गीता सन्देश को स्मरण कर उसका ही भाई ललक यादव उसकी हत्या कर बैठा.

जय कुरुशान! जय कुरुआन!!
धरती पर सुप्रबन्धन के लिए प्रति पल जेहाद की आवश्यकता है,धर्म की आवश्यकता है.

कानून के रखवाले ही जब कानून के भक्षक बन जायेँ, कानून के रखवाले ही जब अपराधियोँ के रक्षक बन जाएँ तो ऐसे मेँ अन्याय व शोषण के खिलाफ ललक यादव जैसोँ के कदम...?!

इसी तरह!

जिन अधिकारियोँ नेताओँ से पब्लिक परेशान हो रही थी,शोषित हो रही थी जिन्हेँ शासन व प्रशासन संरक्षण दे रहा था.दस दिन की चेतावनी के बाद उनकी हत्या नक्सलियोँ व अन्य क्रान्तिकारियोँ के द्वारा हो रही थी.

सन2018ई0 की19 नबम्वर को ललक यादव की प्रेमिका गौरी की शादी गिरिजेश से हो चुकी थी.

थारु समाज का कोई पुरसाहाल नहीँ !

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 01 Oct 2010 06:49 IST
Subject: थारु समाज का कोई पुरसाहाल नहीँ !

राजस्थान के थार मरुस्थल से आये अब उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के तराई भाग मेँ बसा थारू समाज देश की आजादी के बाद अपने भोलेपन के कारण शोषण का शिकार होता रहा और वर्तमान मेँ अब दयनीय स्थिति मेँ पहुँच चुका है.आज से सौ वर्ष पूर्व थारू समाज बहुत ही धनी था लेकिन आज ज्यादा तर लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन जी रहे हैँ.
तराई के वन क्षेत्र को स्वर्ण भूमि बनाने वाले थारू समाज का खून पसीना लगा लेकिन इसी भूमि पर अब अनेक लोग गिद्द जैसी पैनी निगाहेँ लगाये हैँ और थारु समाज उनका शिकार हो रहा है. थारु समाज मेँ भोलेपन अशिक्षा गरीबी पिछड़ेपन का लाभ उठाकर भूमि माफिया व्यापारी वर्ग उच्च किसान आदि लगातार इनके साथ खिलवाड़ कर रहा है.


इससे अच्छा तो ब्रिटिश शासन था कि उस वक्त थारु भूमि की खरीद बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया.अब सरकार के पास थारू समाज के लिए आरक्षण के साथ अनेक योजनाएं हैँ लेकिन तब भी थारु समाज का शोषण नहीँ रुक रहा है.

Wednesday, September 29, 2010

गांधी जयन्ती: सोनिया गांधी के आचरण मेँ गांधी दर्शन.

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Thu, 30 Sep 2010 00:06 IST
Subject: गांधी जयन्ती: सोनिया गांधी के आचरण मेँ गांधी दर्शन.

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप मेँ सोनिया गांधी ने इन पाँच छ:वर्षोँ मेँ देश के अन्दर अपनी साख को बढ़ाया है लेकिन महात्मा गांधी की आर्थिक सामाजिक नीतियोँ पर वह खरी उतरी हैँ यह विचारणीय विषय है.महात्मा गांधी के 'रामराज्य' की अवधारणा का तात्पर्य था राज्य को धीरे धीरे शक्ति और हिँसा के संगठित रूप से निकाल कर एक ऐसी संस्था मेँ बदलना जो जनता की नैतिक शक्ति से संचालित हो.आदर्श
ग्राम्य जीवन,आत्मनिर्भर गाँव, लघु व कुटीर उद्योग,स्वरोजगार,साम्प्रदायिक सौहार्द,स्वदेशी आन्दोलन,भयमुक्त समाज,शहरीकरण की अपेक्षा ग्रामीणीकरण,आदि के स्थापना प्रति दृढसंकल्प बिना गांधी की वकालत कर गांधी का अपमान ही कर रहे हैँ.इन पाँच सालोँ मेँ सोनिया गांधी ने आम जनता के दिल मेँ जगह बनायी है . राहुल गांधी की कार्यशैली के माध्यम से उन्होँने दलितोँ के बीच भी अपना स्थान
बनाया है लेकिन उन्हेँ इस पर विचार करना चाहिए कि कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आरपार की लड़ाई के बिना गांधी दर्शन से प्रभावित आर्थिक सामाजिक नीतियाँ सफल नहीँ हो सकतीँ .जैसा की देखने मेँ आ रहा है कि विभिन्न योजनाएं भ्रष्टाचार की बलि चढ़ती जा रही हैँ.सर्वशिक्षा अभियान हो या मनरेगा या अन्य सब की सब योजनाओँ के साथ ऐसा ही है.गांधी के राष्ट्र विकास का रास्ता शहरोँ की ओर से
नहीँ जाता लेकिन सोनिया गांधी शहरीकरण की अपेक्षा गांव व प्राथमिक साधनोँ के विकास पर कितना बल दे रही हैँ?ओशो ने कहा था

" गांधी को मैँ इस सदी का श्रेष्ठतम मनुष्य मानता हूँ. जो श्रेष्ठतम है उसके बाबत हमेँ बहुत सजग और होशपूर्वक विचार करना चाहिए.कहो कि गांधी ठीक हैँ तो फिर सौ प्रतिशत यही निर्णय लो.फिर छोड़ो सारी यांत्रिकता,फिर छोड़ो सारा केन्द्रीयकरण .बड़े शहरोँ को छोड़ दो,लौट आओ गाँव मेँ,और गांधी का पूरा प्रयोग करो. "


कृषि,बागवानी,प्रकृति की प्राकृतिकता को बनाये रखे बिना किया गया विकास गांधी की नीतियोँ के खिलाफ है.विकास परियोजनाओँ, व्यक्तियोँ की आवश्यकताओँ की पूर्ति की प्रक्रियाओँ को लागू करने की शर्त पर कृषि,बागवानी,प्रकृति,आदि का विनाश प्रकृति की प्राकृतिकता के खिलाफ है ,जिसके बिना भावी पीढ़ी का जीवन खतरे मेँ पड़ जाएगा.दूसरी ओर बजारीकरण ने हमारे सामाजिक समीकरण बदले ही हैँ ,
हमने गाँधी के खिलाफ भी कदम उठाए हैँ.अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है


" जिस प्रकार पश्चिम मेँ हर चीज को दौलत से तौल कर देखा जाता है कि फायदेमन्द है या नुकसानदायक है,उसी तरह से हमने अपने हर सामाजिक और सामुदायिक संस्था को बाजार के हिसाब से बदलना शुरु कर दिया है.उदाहरणत: शिक्षा व चिकित्सा को हम आदरणीय व्यवसाय मानते थे लेकिन...... जब 1947 मेँ हमेँ आजादी मिली थी ,तो उस वक्त भी समाज के समृद्ध तबके का नजरिया था कि पश्चिम के आधुनिकीकरण की गाड़ी बहुत तेजी
से जा रही है ,किसी तरह हम उसे पकड़ लेँ.इसके विपरीत ,
गांधी जी का सपना था कि हम अपना अलग रास्ता चुने. "


यदि वास्तव मेँ सोनिया गांधी गांधी जी के मार्ग पर जाना चाहती हैँ तो अपनी व कांग्रेस की नियति से साक्षात्कार करते हुए विचार करना चाहिए कि क्या वास्तव मेँ देश गांधी जी के रास्ते पर है?

ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


www.antaryahoo.blogspot.com

Tuesday, September 28, 2010

परमाणु का जोर!

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Tue, 28 Sep 2010 07:51 IST
Subject: परमाणु का जोर!

पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो

परमाणु बमोँ का जोर.


सत्ताओँ की साजिशेँ रचेँ बम

त्वचा ,कैँसर, कम होती निगाह-

शारीरिकीय परिवर्तन,


पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो-

परमाणु बमोँ का जोर.


हीरोशिमा,नागासाकी की मानवता,

अब भी नहीँ उबर पाई है,

सत्ताओँ की सजिशोँ को-

मानवता कब याद आई है,

पोखरन के वाशिन्दोँ से पूछो

परमाणु बमोँ का जोर.

Monday, September 27, 2010

02 अक्टूबर:सभ्यता की पहचान महात्मा गांधी

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Mon, 27 Sep 2010 15:41 IST
Subject: 02 अक्टूबर:सभ्यता की पहचान महात्मा गांधी

हमने लोगोँ को कहते सुना है कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी लेकिन महात्मा गांधी का दर्शन,धर्म व अध्यात्म की ओर जाने का महान पथ है.वे आधुनिक दुनिया के श्रेष्ठ जेहादी हैँ.वे मजबूरी कैसे हो सकते हैँ ?महात्मा गांधी ने स्वयं कहा था कि अन्याय को सहना कायरता है.क्या हम कायर नहीँ ?आज के बातावरण से हम सन्तुष्ट भी नहीँ हैँ और खामोश भी हैँ.ऐसे मेँ हम पशुओँ की जिन्दगी से भी ज्यादा गिरे
हैँ.

महात्मा गांधी वास्तव मेँ सभ्यता की पहचान हैँ.हम अभी उस स्तर पर नहीँ हैँ कि उन्हेँ या अन्य महापुरुष या धर्म को समझ सकेँ?अपनी इच्छाओँ की पूर्ति के लिए जवरदस्ती,दबंगता,हिँसा,दूसरे की इच्छाओँ को कुचलना,आदि पर उतर आना हमारी सभ्यता नहीँ है.उन धर्म ग्रन्थोँ व महापुरूषोँ को मैँ पूर्ण धार्मिक नहीँ मानता जो हिँसा के लिए प्रेरणा देते हैँ.हम शरीरोँ का सम्मान करेँ कोई बात नहीँ
लेकिन उनमेँ विराजमान आत्मा व उसके उत्साह का तो सम्मान करेँ.हम किसी के उत्साह को मारने के दोषी न बनेँ.
उदारता,मधुरता,सद्भावना,त्याग,आदि का दबाव चित्त पर होना ही व्यक्ति की महानता है.चित्त पर आक्रोश,बदले का भाव, खिन्नता,हिँसा ,जबरदस्ती,दबंगता,आदि व्यक्ति के विकार हैँ जो कि व्यक्ति के सभ्यता की पहचान नहीँ हो सकती.भारतीय महाद्वीप के व्यकतियोँ के आचरणोँ को देख लगता है कि अभी असभ्यता बाकी है.मीडिया के माध्यम से अनेक घटनाएँ नजर मेँ आती है कि ईमानदार स्पष्ट
कर्मचारियोँ,सूचनाधिकारियोँ,आदि पर कैसे व्यक्ति हावी हो जाता है.यहाँ तक कि हिँसा पर भी उतर आता है.यहाँ की अपेक्षा पश्चिम के देश कानूनी व्यवस्था के अनुसार ज्यादा चलते हैं.यहाँ के लोग तो यातायात के नियमोँ तक का पालन नहीँ कर पाते.

बात को बात से न मानने वाले कैसे सभ्य हो सकते ?शान्तिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहने वालोँ के सामने शान्तिपूर्ण ढंग से जबाब न देने वाले क्या असभ्य नहीँ?जिस इन्सान के लिए अनुशासन हित जबरदस्ती या दबंगता का सहारा लेना पड़े तो समझो वह अभी पशुता व आदिम संस्कृति मेँ है,संस्कारित नहीँ.


" भय बिन होय न प्रीति"

भय के कारण अनुशासन या संस्कार एक प्रकार से ढोंग व पाखण्ड है.
भय व प्रीति अलग अलग भावना है.जरा,अपने अन्दर भय व प्रीति से साक्षात्कार कीजिए.मेरा अनुभव तो यही कहता है कि
प्रीति मेँ भय और खत्म हो जाता है.

ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


A.B.V.I.COLLEGE,

MEERANPUR KATRA,

SHAHAJAHANPUR,

U.P.

Sunday, September 26, 2010

ब्राह्माण्डखोर!

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 26 Sep 2010 11:38 IST
Subject: ब्राह्माण्डखोर!

सन 5020ई0की 25सितम्बर!

तीननेत्रधारी
एक नवयुवती आरदीस्वन्दी दीवार के एक भाग मेँ बने मानीटर पर अन्तरिक्ष की गति विधियोँ को देख रही थी.

अन्तरिक्ष मेँ एक विशालकाय प्रकाश पुञ्ज अनेक मन्दाकिनी को अपने मेँ समेटते जा रहा था.इस विनाशकारी ब्राह्माण्डभक्षी का जिक्र अब से लगभग 1990वर्ष पूर्व भविष्य त्रिपाठी ने किया था.


नादिरा खानम को कमरे मेँ आते देख कर भविष्य त्रिपाठी बोला-


"आओ आओ,आप भी देखो नादिरा खानम.आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व अर्थात सन 2008ई 0 के 25सितम्बर दिन वृहस्पतिवार,01.29AMको 'सर जी' के द्वारा देखे गये स्वपन का विस्तार है यह मेरा स्वपन.उस स्वपन का परिणाम है यह सब.हमेँ कैसी देख रही हो? "



"आप को देख सोँच रही हूँ कि सात दिन बाद (अर्थात सन ई02258 10 सि तम्बर) बाद आप इस दुनियां मेँ नहीँ होँगे."


"मेरा शरीर तो आज से दो सौ वर्ष पूर्व ही मशीन हो चुका था,सिर्फ मस्तिष्क ही प्राकृतिक था लेकिन अब उसे भी साइन्स के सहारे कितना चलाया जाए?अब इस दुनिया से जाना ठीक है और फिर मेरा क्लोन तो इस धरती पर उपस्थित रहेगा ही.मेरे माइण्ड की भी फोटो कापी( प्रतिरुप) तैयार कर ली गयी है."


"मेरे पास भी शरीर के नाम से अपना अर्थात प्राकृतिक क्या है?मस्तिष्क के सिबा?मैँ भी तो ' साइबोर्ग' बन चुकी हूँ डेढ सो वर्ष पूर्व."


"अच्छा,इसे देखो ."


दोनोँ मानीटर पर चित्रोँ को देखने लगते हैँ.


अब फिर 5020 ई 0 !


सन 5020 ई0
की सितम्बर गुजर गयी,अक्टूबर गुजर गया फिर अब नवम्बर भी गुजरने को आयी.....


" 28 नवम्बर सन 5020ई0!"


"विचारणीय विषय है,वो बालक व वृद्ध साइन्टिस्ट हम लोगोँ को तो नजर आना चाहिए."


"आरदीस्वन्दी ,आप ठीक कहती हो लेकिन यह मात्र स्वपन नहीँ हो. "

" तो फिर ?!"


"वे दोनोँ खामोश हो,आरदीस्वन्दी! "


"हाँ,उनकी खामोशी का जिक्र मिलता भी है-अग्नि अण्कल."


"लेकिन ऐसे तकनीकी ज्ञाताओँ से सम्पर्क क्योँ न करो जो ....... . "


"जो होगा, सामने आ जायेगा ."


"हाँ, अपना देखो."


" 'दस सितम्बर' नाम के उपन्यास की पाण्डुलिपि आखिर किसने गुम की ? 'सर जी' तो अपने जीवन से सम्बन्धित हर कागज सँभाल कर रखते थे."


"देखो, अन्वेषण कर रहे है कुछ लोग.किसी कम्प्यूटर पर यदि डाला गया होगा तो जरूर सफलता मिलेगी. वह कम्प्यूटर जो कभी इण्टरनेट से जुड़ा हो.कुछ इण्टरनेट अपराधी .........?!"


""" *** """
एक नगरीय क्षेत्र!

अधिकतर इमारतेँ पिरामिड आकार की थीँ.कुछ दूरी पर जंगल के बीच ही एक भव्य इमारत -'सद्भावना'


'सदभावना' के बगल मेँ स्थित एक इमारत मेँ आरदीस्वन्दी की माँ अफस्केदीरन के साथ बैठ एक अधेड़ व्यक्ति'नारायण' मेडिटेशन मेँ था.



'सद्भावना'मेँ तो किसी स्त्री को जाना वर्जित था.वहाँ जो स्त्रियां थी भीँ वे ह्यूमोनायड थे.


नारायण के गुरु अर्थात महागुरू ने 'सद्भावना' इमारत का निर्माण करवाया था.


महागुरु का वास्तविक नाम था- 'उन्मुक्त जिन .'

अब से 220वर्ष पूर्व अर्थात सन 4800ई0 के 19 जनवरी!ओशो पुण्य दिवस!!


एक हाल मेँ बैठा वह मेडिटेशन मेँ था. उसके कानोँ मेँ आवाज गूँजी -


"आर्य, उन्मुक्त! तुम अभी 'जिन'नहीँ हुए हो.जिन के नाम पर तुम पाखण्डी हो.तुम को अभी कठोर तपस्या करनी होगी."


'उन्मुक्त जिन' के अज्ञातवास मेँ जाने के बाद कुख्यात औरतेँ ब्राह्माण्ड मेँ बेखौफ हो आतंक मचाने लगीँ.इन कुख्यात औरतोँ के बीच एक पाँच वर्षीय बालक ठहाके लगा रहा था.


यह कलि औरतेँ...?!


पाँच वर्षीय बालक मानीटर पर ब्राह्माण्डखोर की सक्रियता को देख देख ठहाके लगा रहा था.


इधर 'उन्मुक्त जिन' एक बर्फीली जगह मेँ एक गुफा के अन्दर मेडिटेशन मेँ था.

Saturday, September 25, 2010

कथा: ब्राह्मण्डभक्षी ! < ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'>

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 26 Sep 2010 10:01 IST
Subject: कथा: ब्राह्मण्डभक्षी !


< ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'>

अचानक वह सोते सोते जाग उठा.


स्वपन मेँ उसने यह क्या देख लिया?


मेडिटेशन से जब उसने अपने माइण्ड का सम्पर्क अपनी कम्प्यूटर प्रणाली से किया तो उसके माइण्ड मेँ टाइम स्मरण हुआ-1.29ए.एम. गुरुवार,25 सितम्बर 5020ई0!


खैर...


भविष्यवाणी थी कि घोर कलियुग के आते आते आदमी इतना छोटा हो जाएगा कि चने के खेत मेँ भी छिप सकता है.भाई ,शब्दोँ मेँ मत जाईए. वास्तव मेँ अब आदमी मानवीय मूल्योँ से दूर हो कर छोटा (शूद्र)ही हो जाएगा.हाँ,इतना नहीँ कि चने के खेत मेँ छिप जाये.


क्या कहा,छिप सकता है?


चना एवं उससे सम्बन्धित उत्पाद आदमी के छोटेपन (विकारोँ)को छिपा सकते हैँ.जब सबके लिए वृहस्पति खराब होगा तो.....?वृहस्पति किसके लिए खराब हो सकता है ?वृहस्पति किससे खुश रह सकता है?पीले रंग (थेरेपी )वस्त्र और बेसन से बने उत्पाद....?!और भाई हनुमान भक्तोँ द्वारा वन्दरोँ को चने खिलाना... ...?! सन 1980ई0 तक व्यायामशालाओँ व स्वास्थ्य केन्द्रोँ के द्वारा नाश्ते मेँ चने पर जोर.....


और यह....?अरे यह क्या ?


वैज्ञानिकोँ ने प्रयोगशाला मेँ चने के काफी बड़े बड़े पौधे विकसित कर लिए . वे नीबू करौँदे के पौधोँ के बराबर .....?!


खैर..?!

वह बालक सोते सोते जाग उठा.

और-


"भविष्यखोर, नहीँ ब्राह्माण्डखोर."
-वह बुदबुदाया.


फिर-

" किस सिद्धान्त पर'ब्राह्माण्डखोर'आर्थात'ब्राह्माण्डभक्षी'अर्थात ब्राह्माण्ड को खाने वाला....ब्राह्माण्ड का भक्षण....?!"


उस बालक ने प्रस्तुत की-'ब्राह्मण्डक्षी'वेबसाइड.


मचा दिया जिसने साधारण जन मानस मेँ तहलका.

लेकिन ,वह बालक कौन...?दुनिया अन्जान.


पहुँचा वह एक बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के पास.


वह बुजुर्ग महान वैज्ञानिक उस बालक के माइण्ड के चेकअप बाद चौँका -


"ताज्जुब है ! एक सुपर कम्पयूटर से हजार गुना क्षमता रखने वाला इसका माइण्ड ? समाज इसे पागल कहता है ? इसके माइण्ड की यह कण्डीशन ? इतनी उच्च कण्डीशन कि स्वयं इस बालक का मन व शरीर ही इसको न झेल पाये और अपने रूम से निकलने के बाद अपने शरीर व मन को सँभाल पाये ? परिवार व समाज की उम्मीदोँ पर खरा न उतर पाये? क्या क्या? क्या ऐसा भी होता है? तो.....ऐसे मेँ इसे चाहिए ' सुपर मेडिटेशन '.
मेडिटेशन के बाद इसका मन जब शान्त शान्ति व धैर्य धारण करे तो इसके स्वपन चिन्तन सम्पूर्ण मानवता के लिए वरदान साबित हो सकते है ? इनका एकान्त जितना महान होता है उतना ही कमरे से बाहर निकलने के बाद..... यह सब भीड़ मेँ कामकाजी बुद्धि न होने के कारण...."


पुन:


"इस बालक की वेबसाइडोँ मेँ जो भी है वह मात्र इसके अन्तर्द्वन्द,सामाजिक प्राकृतिक क्रियाओँ व्यवहारों के परिणाम स्वरूप विचलन से उपजे तथ्योँ का परिणाम है लेकिन सुपरमेडिटेशन के बाद जब इसका मन मस्तिष्क शान्त होगा तब......?!इस दुनिया का आम आदमी उस स्तर तक लाखोँ वर्षोँ बाद पहुँच पायेगा. वाह ! इसका माइण्ड....?!वास्तव मेँ इस बालक को व्यवसायी व मीडिया की गिरफ्त से दूर रखना होगा और
फिर मीडिया के एक पार्ट ने अनेक बार जनमान स को मौत के मुँह मेँ भी ढकेला है,भय विछिप्तता के मुँह मेँ भी ढकेला है."

इस बालक ने मीडिया के सामने बस इतना बयान दिया-


" खामोश रहना ही ठीक है.मेरे अन्दर जो पैदा होता है,मैँ उसे नहीँ झेल पाता हूँ.विछिप्तता की स्थिति तक पहुँच जाता हूँ.अपने शरीर को मार देने की भी इच्छा चलने लगती है.ऐसे मेँ .......?!आप मेरे बयानोँ के आधार पर इस धरती पर व अन्य धरतियोँ पर भय या विछिप्तता का ही वातावरण बनायेँगे "

मानीटर युक्त दीवार पर बुजुर्ग महान वैज्ञानिक के साथ इस बालक को दर्शाया गया था.जिसे सम्बन्धित घटनाओँ के साथ कभी भविष्य त्रिपाठी ने कम्प्यूटर पर ग्राफ किया था.


" सन 2008 ई0 की 10 सितम्बर को पृथ्वी पर प्रारम्भ होने वाले महाप्रयोग के सम्बन्ध मेँ कुछ टीवी चैनलस जानस मेँ कितनी भयाक्रान्त स्थिति पैदा कर दिए थे ? कुछ लोग विछिप्त हो गए,यहाँ तक कि आत्महत्या तक कर बैठे.हमेँ <www.bhavishy.com> के सम्बन्ध मेँ खामोश ही रहना चाहिए.सन 5020ई0 मेँ जो होँगे,वे देखेँगे इसे. "

पुन:-


"यह बालक व साइन्टिस्ट अभी तो मात्र मेरा स्वपन है जो इक्कयानवे वीँ सदी मेँ पूर्ण होगा.क्या डेट ? हाँ, याद आया 25 सित म्बर5020ई0 ......?!"


" भविष्य,क्या सोँच रहे हो ? "

क्या,भविष्य? यह व्यक्ति भविष्य?
हाँ,यह भविष्य ही अर्थात भविष्य त्रिपाठी ही.


"आओ आओ , आप भी देखो-नादिरा खानम.आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व अर्थात सन 2008ई0के 25 सितम्बर दिन वृहस्पतिवार ,01.29
A.M.को 'सर जी'के द्वारा देखे गये स्वपन का विस्तार है यह मेरा स्वपन ."

इधर अन्तरिक्ष मेँ ब्राह्माण्डभक्षी विनाश करता चला जा रहा था.

Friday, September 24, 2010

कथा: 10 सितम्बर !

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 24 Sep 2010 18:28 IST
Subject: कथा: 10 सितम्बर !

सन 5020ई 0की10 सितम्बर!


आरदीस्वन्दी का जन्मदिन!सनडेक्सरन धरती पर पिरामिड आकार की एक भव्य बिल्डिंग मेँ आरदीस्वन्दी के जन्मदिन पार्टी का आयोजन था.


दूसरी ओर एक अनुसन्धानशाला मेँ-


बड़े बड़े जारोँ मेँ अनेक युवतियोँ के क्लोन उपस्थित थे. अनेक बड़ी बड़ी परखनलियोँ मेँ बच्चोँ के भ्रूण विकसित हो रहे थे.अग्नि क्लोन पद्धति का स्पेस्लिस्ट .अपने प्रयोगशाला मेँ वह एक क्लोन व ह्यमोनायड पद्धति के सम तकनीकी से सम्कदेल वम्मा का प्रतिरूप तैयार किया था.जिससे अग्नि बोल रहा था-


" आप सम्कदेल वम्मा द्वितीय हैँ."


" आज आरदी स्वन्दी का जन्म दिन है जो कि सम्कदेल वम्मा की फ्रेण्ड थी."


फिर दोनोँ अनुसन्धानशाला से बाहर जाने लगे.


"अब हम दोनोँ आरदीस्वन्दी के बर्थ डे पार्टी मेँ चल रहे हैँ."

"थैँक यू!"


"किस बात का?"


" आज मैँ आरदीस्वन्दी से मिलूँगा ."


""" *** """


अचानक जब आरदीस्वन्दी ने सम्कदेल वम्मा द्वितीय को देखा तो उसे विश्वास नहीँ हुआ.


अग्नि के समीप आते हुए-


"अग्नि अण्कल! जरुर यह आपकी कृति होगी."


*** ## ***


आरदीस्वन्दी सम्कदेल वम्मा द्वितीय के साथ एक पार्क मेँ बैठी थी.


" कुछ वर्षोँ बाद कल्कि का अवतार होगा.यह समझने वाली बात है कि दो अवतारोँ के बीच हजारोँ वर्ष का अन्तर ...?क्या विधाता हर वक्त सजग नहीँ होता ?"

"आरदीस्वन्दी! विधाता तो हर वक्त सजग रहता है.वह सजग रहने या न रहने का प्रश्न ही नहीँ, यह तो स्थूल जगत की बात है.जिस तरह विधाता न कायर होता है न साहसी , उसी तरह वह न सजग रहता है न ही सजगहीन. न ही वह समय मेँ बँधा है.न उसका भविष्य है न उसका भूत,वह सदा वर्तमान मेँ है. उसके प्रतिनिधि हमेशा विभिन्ऩ धरतियोँ पर काम करते रहते हैँ,जिन धरतियोँ पर जीवन नहीँ है वहाँ भी जीवन की सम्भावनाएँ
तलाशते रहते है."


पार्क मेँ एक विशालकाय नग्न व्यकति की प्रतिमा,जिसके शरीर पर एक अजगर लिपटा था और जिसका एक हाथ ऊपर आसमान की ओर उठा था,जिसमेँ दूज का चाँद था. दूसरे हाथ मेँ अजगर का मुँह पकड़ मेँ था.

" यह, यह प्रतिमा देख रहे हो. इसकी उपस्थिति पृथ्वी बासियोँ की तरह स्थूल मोह को दर्शाती है.ऐसा मोह प्रत्येक सृष्टि मेँ वैदिक काल के बाद पनपता है. कुछ लोग बाद मेँ स्थूल मोह के खिलाफ बात करने आते भी हैँ , उनको अधिकतर लोग नजर अन्दाज कर देते हैँ . जिसके परिणाम स्वरुप उन्हेँ कीट पतंगोँ जानवरोँ वृक्षोँ आदि का शरीर तक धारण करना होता है. . शरीर जब जीव के लायक नहीँ रहता तो जीव शरीर
को छोड़ देता है और जब धरती ही जीवोँ के लायक नहीँ रह जाती तो...........?!"


"धरती को जीव छोड़ देते हैँ वे धरती पर रह जाते हैँ.और तब भी धरती पर शिव शंकर अपना खेल रचाते रहते हैँ. शिव ही हैँ जो विष को झेलते हैँ.प्रदूषण को झेलने वाले दो तरह के होते हैँ एक शिवमय दूसरे प्रदूषण के आदी...."


" हाँ,10 सितम्बर........"




सन2008ई0
10सितम्बर !

'कान्टेक्ट म्यूजिक डाट काम ' के मुताबिक ब्रिटिश गायक राबी विलियम्स ने बताया कि उनके घर एलियन आया था. ऐसा उस वक्त हुआ जब वे अपना गीत ' एरिजोना'लिखना खत्म ही किए थे.


10सितम्बर को ही-


बिग बैँग के समय की ऊर्जा तथा ब्राह्माण्ड की रचना से जुड़े गूढ़ रहस्योँ का पता लगाने के लिए 'लार्ज हेडरन कोलाइडर'(एल एच सी)के जरिए प्रयोग किया जाना निश्चित हुआ था.अत:वह भारतीय समयानुसार दिन मेँ एक बजे प्रारम्भ होना तय था.कुछ लोगोँ ने महाप्रलय की शंका भी व्यक्त कर दी थी.इस प्रयोग के प्रारम्भ होने से दो सेकण्ड मेँ पृथ्वी और चन्द्रमा नष्ट हो सकता था और आठ मिनट मेँ तो सूरज
समेत पूरा सौरमण्डल .मीडिया ने इसी शंका के आधार पर पूरे विश्व को भ्रम शंका अफवाह मेँ ढकेल दिया था.

सेरेना की आत्मकथा-'मेरे जीवन के पल ' मानीटर युक्त कमरे की एक दीवार पर थी .आरदीस्वन्दी व सम्कदेल वम्मा द्वितीय जिसे देख रहे थे.


सन2007ई0 10सितम्बर!


शिवानी प्रकरण ने 'सर जी' को हतास उदास निराश बना दिया था.

.....लगभग एक साल बीतने जा रहा था. 'सर जी'को शिवानी से बोलने की इच्छा तो होती थी लेकिन 10सितम्बर 2007 से शिवानी नहीँ बोला था.शिवानी बोलेगी तो ठीक,नहीँ तो......?!


'सर जी' को शिवानी से कोई शिकायत न थी,न ही वे शिवानी के प्रति कोई गैरकानूनी या अप्राकृतिक सोँच रखते थे.जमाने का क्या ?सावन के अन्धे को हरा ही दिखायी देता है.'सर जी' कहते थे कि वह प्रेम प्रेम नहीँ जो आज है कल खत्म हो जाए.प्रेम खत्म नहीँ होता,प्रेम का रुपान्तरण होता है.प्रेम जब पैदा हो जाता है तब व्यक्ति नहीँ चाहता कि जिस से प्रेम है उस पर अपनी इच्छाएं थोपी जाएँ,उसे जान बूझ कर
परेशान किया जाए या फिर उसकी इच्छाओँ को नजर अ न्दाज किया जाये. प्रेम मेँ 'मैँ'समाप्त हो जाता है.

Wednesday, September 22, 2010

24सितम्बर2010ई0:ऐ मुसलमानोँ सुनोँ!

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Thu, 23 Sep 2010 04:24 IST
Subject: 24सितम्बर2010ई0:ऐ मुसलमानोँ सुनोँ!

एतिहासिक आसिफी मस्जिद के इमाम ए जुमा और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि इस्लाम के मुताबिक नमाज केवल अपनी जमीन ( खरीदी या फिर दान की गयी जमीन हो) पर ही पढ़ना जायज है.हमारी जमीन नहीँ है तो वापस करना होगा.आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली ने कहा कि कुरान मेँ साफ कहा गया है कि इन्सान की हत्या
करना इंसानियत की हत्या करना है और इंसान की जान बचाना इंसानियत को बचाना है.

21 सितम्बर को नई दिल्ली मेँ इत्तेहाद ए मिल्लत कन्वेँशन और संत समाज की साझा प्रेस वार्ता मेँ सभी पन्थोँ के गुरुओँ ने शान्ति व सौहार्द की बात की.

ऐ मुसलमानोँ ! मैँ जितना मुस्लिम दर्शन का हिमायती हूँ उतना वर्तमान हिन्दुओँ की वर्तमान सोँचात्मक दर्शन का नहीँ.जब मैँ कहता हूँ कि मेरा आदिग्रन्थ है-ऋग्वेद! तो मेरी वर्तमान हिन्दू समाज के प्रति सकारात्मक सोँच नहीँ होती और अपने को हिन्दू नहीँ वरन आर्य समझ कर गौरवान्वित होता हूँ . धर्म का सम्बन्ध मैँ चरित्र ,नैतिकता,आचरण, उदार प्रवृत्ति,पर हित,सेवा भाव,मिलनसार
प्रवृत्ति , आदि से जोड़ता हूँ न कि धर्म स्थलोँ,रीति रिवाजोँ, पूजा पद्धतियोँ,मतभेदोँ, द्वेश भावना,आदि से.प्रकृति के सम्मान के बिना हमारी धार्मिकता ढोँग व पाखण्ड है.इन्सान प्रकृति की श्रेष्ठ कृति है,उसे कष्ट पहुँचा कर क्या धर्म विकसित होता है ?
हम सब जिसे धर्म कहते ,वह धर्म नहीँ वरन पन्थ हैँ.चाहेँ हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य धर्म सब इंसान का एक ही होता है.


हमेँ अपने विवेक ,बुद्धि व हृदय के दरबाजे हमेशा खुले रखना चाहिए.हमेँ यह भी अनुशीलन रखना चाहिए कि चाहेँ विश्व मेँ कोई भी जाति हो ,सबके पूर्वज एक ही थे.विज्ञान भी इसे स्वीकृति देता है. धनाढ्य व सुशिक्षित मुस्लिम वर्ग भी इस बात को समझता है. विश्व की तमाम जातियोँ के डी एन ए परीक्षण भी यही बताते हैँ कि विश्व की सभी जातियोँ का सम्बन्ध भारतीय महाद्वीप की आदि जातियोँ से रहा
होगा.अब शोध इस बात को भी स्वीकार कर रहे है कि आदि मानव की परिस्थितियाँ ब्रह्म देश(कश्मीर, तिब्बत, मानसरोवर, हिन्दुकुश ,आदि) मेँ उपस्थित थीँ.ढाई हजार वर्ष पूर्व सम्भवत: आपस मेँ वैवाहिक सम्बन्ध भी बिना रोक टोक के थे.


सभ्यता,संस्कृति व दर्शन के विकास व हमारे पूर्वजोँ मेँ आयी कमियोँ के परिणामस्वरूप विश्व मेँ विभिन्न पन्थ सामने आये.जिसे मैँ सनातन धर्म की विभिन्न परिस्थितियोँ मेँ यात्रा व सनातन धर्म को बचाने का परिणाम मानता हूँ.
आदि ऋषियोँ नबियोँ से लेकर अष्टावक्र कणाद आदि,हजरत इब्राहिम इस्माइल आदि ,सभ्यताओँ की धार्मिक स्थिति व घटक,जैन बुद्ध,अरस्तु कन्फ्यूशियस आदि,ईसा व हजरत मोहम्मद साहब आदि,कबीर,नानक,ओशो,आदि सनातन धर्म यात्रा का एक हिस्सा हैँ जो कि हमेशा जारी रहनी है.
इस यात्रा की मंजिल अनन्त व शाश्वत है.मनुष्य भी इस यात्रा का मात्र एक पड़ाव है.

बहुलवाद हमारे विश्व की एक शोभा है.जिसमेँ सामञ्जस्य व सौहार्द बनाये रखने
की असफलता हमारी कमजोरी है,हमारी इंसानियत की कमजोर जड़ की पहचान है.इस कमजोरी को दूर करने के लिए अभी अनन्त यात्रा तक महापुरुषोँ की आवश्यकता है.कम से कम तब तक जब तक मानव महामानव होने पड़ाव तक नहीँ पहुँच जाता.अरविन्द घोष का तो यहाँ तक कहना है कि यात्रा महामानव होने बाद भी जारी रहेगी.अभी तो मनुष्य मनुष्य ही ईमानदारी से नहीँ बन पाया है, उस पर आदिम प्रवृत्तियाँ अभी हाबी हैँ और अभी
उसकी सोँच एन्द्रिक व शारीरिक आवश्यकताओँ से ऊपर नहीँ उठ पायी है.


ऐसे दार्शनिक राजाओँ की आवश्यकता है जिसके निर्देश पर उनके सेनापति व कर्मचारी साम दाम दण्ड भेद से विश्व मेँ कुप्रबन्धन भ्रष्टाचार व अन्याय के खिलाफ वातावरण बनाए रखेँ.


शेष फिर....


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ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'

A.B.V.I.C.

MEERANPUR KATRA ,SHAHAJAHANPUR, U.P.

कथा: सम्कदेल का अन्त!

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Wed, 22 Sep 2010 17:31 IST
Subject: कथा: सम्कदेल का अन्त!

....सम्कदेल वम्मा मुश्किल मेँ था.अब कैसे यान को वह आगे निकाले?दुश्मनोँ के यान से छोड़ी जा रही घातक तरंगे यान को नुकसान पहुँचा सकती थी.ऐसे मेँ उसने अनेक धरतियोँ पर उपस्थित अपने सहयोगियोँ से एक साथ सम्पर्क साधा.


"मेरे यान को घेर लिया गया है."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगियोँ के द्वारा अपने अपने नियन्त्रण कक्ष से अपने अपने कृत्रिम उपग्रहोँ मेँ फिट हथियारोँ से दुश्मन के यानोँ पर घातक तरंगे छोड़ी जाने लगीँ.अनेक यान नष्ट भी हुए.


लेकिन....?!


सम्कदेल वम्मा के यान मेँ आग लग गयी .


"मित्रोँ!सर! यान मेँ आग लग गयी है. दुश्मनोँ के यानोँ से छोड़ी जाने वाली घातक तरंगोँ से मेरा यान अब भी घिरा हुआ है. कोई अपने कृत्रिम उपग्रह से पायलटहीन यान भेजेँ . लेकिन.....?!मैँ......मैँ... ....मैँ.....आ.....आ...(कराहते हुए) आत्मसमर्पण करने जा रहा हूँ."

फिर सम्कदेल वम्मा ने सिर झुका लिया.


सम्कदेल वम्मा ने अपने बेल्ट पर लगा एक स्बीच आफ कर दिया.जिससे उसके ड्रेश पर की जहाँ तहाँ टिमटिमाती रोशनियाँ बन्द हो गयीँ. इसके साथ ही यानोँ से घातक तरंगोँ का अटैक समाप्त हो गया और जैसे ही उसने अपने यान का दरवाजा खोला एक विशेष प्रकार की चुम्बकीय तरंगोँ ने उसे खीँच कर दुश्मन के एक यान मेँ पहुंचा दिया.वह यान के बन्द होते दरबाजे की ओर देखने लगा.

"दरबाजे की ओर क्योँ देख रहे हो?"


"तुम?!"


"हाँ मै,तुम हमसे दोस्ती कर लो.मौज करोगे."


"मेरा मौज मेरे मिशन मेँ है."


" हा S S S S हा S S S S हा S S S हा S S S S हा S S S " - ठाहके लगाते हुए.

फिर-

"धर्म मेँ क्या रखा है? जेहाद मेँ क्या रखा है ? ' जय कुरुशान जय कुरुआन' का जयघोष छोड़ो.'जय काम' बोलो 'जय अर्थ' बोलो.जितना 'काम'और 'अर्थ'मेँ मजा है उतना 'धर्म'और 'मोक्ष'मेँ कहाँ ? 'काम'और'अर्थ'की लालसा पालो,'धर्म'और 'मोक्ष' की नहीँ."


"तुम मार दो मेरे तन को.तभी तुम्हारी भलाई है."



" सम्कदेल वम्मा! अपने पिता की तरह क्या तुम मरना पसन्द करोगे? "


" पिता कैसा पिता?शरीर तो नश्वर ही है . तू हमेँ मारेगा ? भूल गया तू क्या कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? भूल गया तू क्या कुरुआन को -हुसैन की शहादत को ? "


"सम्कदेल! तू भी अपने पिता की तरह बोलता है? "


"हूँ! तुम जैसे भोगवादी! धन लोलुप! कामुक!थू! "

"सम्कदेल!"


"हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जायेगी . क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े? राम कृष्ण के जन्म हेतु अतीत मेँ कारण छिपे होते है. तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू मोक्ष नहीँ पा सकता, इसके लिए तुझे बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरीर को मार दे लेकिन तेरा अहंकार चकनाचूर करने को मैँ फिर जन्म लूँगा -देव रावण . "


" अपनी फिलासफी तू अपने पास रख. कुछ दिनोँ बाद ब्राहमाण्ड की सारी शक्तियाँ हमारे हाथ मेँ होगी. तुम मुट्ठी भर लोग क्या करोगे? अब हम वो दुर्योधन बनेँगे जो कृष्ण को भी अपने साथ रखेगा ,कृष्ण की नारायणी सेना भी. अब मैँ वह रावण बनूंगा जो विभीषण से प्रेम करेगा,राम के पास नहीँ जाने देगा.अगर जायेगा भी तो जिन्दा नहीँ जाएगा."


"यह तो वक्त बतायेगा,जनाब . वक्त आने पर अच्छे अच्छे की बुद्धि काम नहीँ करती.आप क्या चीज हैँ ?"


"हूँ!"


फिर-


" सम्कदेल! जानता हूँ धर्म मोक्ष देता है लेकिन तुम क्या यह नहीँ जानते कि अधर्म भी मोक्ष देता है?मैँ आखिरी वार कह रहा हूँ कि मेरे साथ आ जाओ. नहीँ तो मरने को तैयार हो जाओ."


" मार दो, मेरे शरीर को मार दो."


"डरना नहीँ मरने से?"


"क्योँ डरुँ? चल मार."


सम्कदेल वम्मा के सहयोगी अपने अपने ठिकाने से अन्तरिक्ष मेँ आ चुके थे.


लेकिन...?!


सम्कदेल वम्मा ......?!


""" *** """


एक चालकहीन कम्प्यूटरीकृत यान सनडेक्सरन धरती पर आ कर सम्कदेल वम्मा के मृतक शरीर को छोड़ गया था. आरदीस्वन्दी भागती हुई मृतक शरीर के पास आयी और शान्त भाव मेँ खड़ी हो गयी.


उसके मन मस्तिष्क मेँ सम्कदेल वम्मा के कथन गूँज उठे.


".....शरीर तो नश्वर है . हमे तू मारेगा? भूल गया कुरुशान को अर्थात गीता सन्देश को ? ..... हमारी कोशिसेँ बेकार नहीँ जाएगी. क्योँ न बार बार मर कर बार बार जन्म लेना पड़े?"


आरदीस्वन्दी अभी कुछ समय पहले सम्कदेल वम्मा व देव रावण की वार्ता को सचित्र देख रही थी.आरदीस्वन्दी ने सिर उठा कर देखा कि यान अन्तरिक्ष से वापस आ रहे थे.


कुछ दूर एक विशालकाय स्क्रीन पर अन्तरिक्ष युद्ध के चित्र प्रसारित हो रहे थे. देव रावण के अनेक यानोँ को नष्ट किया जा चुका था.


अब भी-


"..... तेरा अहंकार जाग कर जब तक सौ प्रतिशत नहीँ हो जाता तब तक तू भी मोक्ष नहीँ पा सकता है, इसके लिए तुझे भी बार बार जन्म लेना पड़ सकता है. तू चाहे मेरे इस शरी

Sunday, September 19, 2010


Subject: 20 सितम्बर: श्रीराम शर्मा आचार्य जन्म दिवस
आधुनिक भारत मेँ वैज्ञानिक अध्यात्म के जगत मेँ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का योगदान सराहनीय रहेगा. विशेष रूप से उनके द्वारा 'ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान ' की स्थापना के लिए हम जैसे युवा बड़े ऋणी रहेँगे. 'यज्ञपैथी' की खोज विश्व के लिए वरदान बनने जा ही रहा है.

मैँ व्यक्तिपूजा का विरोधी रहा हूँ.हम तक धरती पर हैँ प्रकृति का सम्मान करते रहना है.आत्म साक्षात्कार के साथ साथ महापुरुषोँ से प्रेरणा लेते रहना है.हमने कभी ओशो,कभी जयगुरुदेव,कभी अन्य की लोगोँ को आलोचना करते देखा है और वे जिसके अनुयायी होते है,उसके पीछे अन्धे हो जाते हैँ .मैँ किसी का अनुयायी नहीँ बनना चाहता.बस,आत्म साक्षात्कार,सत्य
अन्वेषण,स्वाध्याय,सम्वाद,मुलाकात,आदि के माध्यम से अपने अन्तर जगत को अपनी आत्मा मेँ लीन कर देना चाहता हूँ.अनुयायी तो झूठे होते है,वे लकीर के फकीर होते है.सुबह से शाम,शाम से सुबह तक अपने कर्मोँ के प्रति वे जो नियति रखते हैँ,वह निन्दनीय हो सकती है.महापुरुषोँ के दर्शन के खिलाफ भी देखी है मैने इनकी सोच.एक दो घण्टे स्थूल रूप से अपने महापुरूष के लिए समय देने का मतलब यह नहीँ हो
जाता कि हम श्रेष्ठ हो गये, सोँच से आर्य हो गये.

मैँ जब कक्षा 5 का विद्यार्थी था ,तब से मेँ अखण्ड ज्योति पत्रिका व आचार्य जी से सम्बन्धित साहित्य पढ़ता आया हूँ.कक्षा 12 मेँ आते आते ओशो ,ओरसन स्वेट मार्डेन,आर्य साहित्य,आदि का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया था.

लेकिन किताबेँ पढ़ डालना व पढ़ लेने मेँ फर्क होता है. आत्मसाक्षात्कार व समाज के लिए भी समय देना आवश्यक है.
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के जन्म के अवसर पर तटस्थ विद्वानोँ व दार्शनिकोँ को मेरा शत् शत् नमन् !

एक नई वैचारिक क्रान्ति के साथ-
http://www.ashokbindu.blogspot.com/

Friday, September 17, 2010

भारत मेँ प्रतिभा

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: article.hindi@delhipress.in
Sent: Sun, 11 Oct 2009 17:51 IST
Subject: FW: भारत मेँ प्रतिभा


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Subject: भारत मेँ प्रतिभा
Date: Fri, 9 Oct 2009 10:05:10
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: editor@brl.amarujala.com <editor@brl.amarujala.com>

फिर गर्व हुआ है भारतीयोँ को,एक भारतवंशी ने रसायन के क्षेत्र मेँ नेबोल जो पा लिया .वैसे चाहेँ प्रतिदिन भारत के अन्दर प्रतिभाओँ का गला घुटता रहै.जो प्रतिभाएँ जब तक भारत मेँ रहती हैँ भारतीयोँ के बीच सनकी पागल कामचोर आदि होती हैँ.यहाँ तक कि वे अभिभावकोँ की नजर मेँ भी उम्मीदोँ पर खरा नहीँ उतरतीँ. जब वे विद्रोह करके अपने कार्य मेँ लगे रहते हुए विदेश की नागरिकता ग्रहण कर लेती
है और पुरस्कृत होती हैँ तो उन भारतीयोँ को ही गर्व होता है उन्हेँ नजरान्दाज करती रही थीँ.ऐसी कुछ प्रतिभाऔँ की आत्मकथाएँ कहती हैँ कैसै क्या क्या इन्हेँ अपने परिवार या समाज से झेलना पडा. धन्य!ऐसे भारतीयोँ को.जो प्रतिभाऔँ को वातावरण नहीँ दे सकतीँ.
ए.के.वी. अशोक बिन्दु आबाविइण्टर कालेज कटरा, शाहजहाँपुर (उप्र)


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कथा: मुर्झाया पुष्प लेखक:अशोक कुमार वर्मा' वर्मा'/ www.akvashokbindu.blogspot.com

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 17 Sep 2010 05:00 IST
Subject: कथा: मुर्झाया पुष्प


लेखक:अशोक कुमार वर्मा' वर्मा'/


www.akvashokbindu.blogspot.com

सेरेना के आत्म कथा से-


'सर जी' मीरानपुर कटरा मेँ आने के चार वर्ष पुवायाँ शहर मेँ थे.वे जहाँ एक शिशु मन्दिर मेँ अध्यापन कर रहे थे. उनका एक प्रिय छात्र था -पुष्प.पुष्प कक्षा दो का छात्र था.पढ़ने मेँ तो वह ठीक था लेकिन दबाव व भय से ग्रस्त था. 'सर जी ' नम्र व्यवहारोँ ने उसे 'सर जी' के नजदीक ला दिया था.पुष्प के पिता दबंगवादी व आलोचनावादी थे .जो परिवार के अन्दर नुक्ताचीनी से ही अपना समय व्यतीत करते
थे.जिसका प्रभाव अन्तरमुखी पुष्प पर ऋणात्मक पड़ा.

एक दिन उसकी माँ का पत्र 'सर जी' के पास आया.जिससे पता चला कि पुष्प अब इस दुनिया मेँ नहीँ रहा.


उस पत्र मेँ -" आप थे तो अच्छा लगता था.आप घर पर आते थे तो और अच्छा लगता था. अब भी अच्छा लगता है, अन्यथा आपका शिष्य कैसे कह लाऊँगा?आपने कहा था कि सिर्फ ईश्वर अपना है , आत्मा अपनी है और सब यहीँ छूट जाता है --इस सेन्स मेँ अनेक बार पुष्प मुझसे बोला था. यह भाषा तो मैँ लिख रही हूँ. आज वह इस दुनिया मेँ नहीँ है. अपने पिता की उसके अस्तित्व पर बार बार चोटेँ........ पिता की मार से एक दिन बेहोश हो
गया.काफी इलाज हुआ.बेहोशी टूटी पुष्प की ,तो उसे आप की याद आयी और कहा कि आपको पत्र लिखे.अत:मैँ पत्र लिख रही हूँ ,मैँ पुष्प की माँ."

पुष्प को एक तालाब के किनारे जमीन मेँ दफना दिया गया था. एक अघोरी की पुष्प पर निगाह रहती थी, जब पुष्प दफन हो गया तो....?!


घनी अन्धेरी बर सात की रात ! वह अघोरी मिट्टी हटा कर पुष्प की लाश लाकर जंगल के बीच एक खण्डहर मेँ आ गया.जहाँ काली देवी का मन्दिर भी था.

पुष्प की लाश को स्नान करवाने के बाद उसे एक पवित्र आसन पर लिटा दिया गया था.आस पास धूपवत्ती व अगरवत्तियाँ लगा दी गयीँ थी.हवन कुण्ड की आग तेज हो गयी थी.अघोरी मन्त्र उच्चारण के साथ हवन कुण्ड मेँ आहुतियाँ देने लगा था.आस पड़ोस मेँ साधु व साध्वी शान्तभाव मेँ बैठे थे या कुछ दूरी पर खड़े थे.वहाँ उपस्थित एक युवती पुष्प की लाश को बार बार देखे जा रही थी.

वह युवती.......?!


वह युवती!

खैर....?!


जंगल के बीच से गुजरती एक नदी ! नदी के किनारे स्थित एक टीले पर एक युवती की मूर्ति और ऊपर छत्र.नीचे चबूतरे पर लिखा था-
'जय शिवानी'. उस चबूतरे पर थी अब पुष्प की लाश.पीछे कुछ दूरी पर पशुपति की भव्य मूर्ति .


वह युवती नग्नावस्था मेँ मंत्रोच्चारण के साथ नृत्य मेँ मग्न थी.

वहाँ और कोई न था.

और.....


कुछ दूरी पर एक खण्डहर मेँ काली देवी की प्रतिमा के सामने एक बुजुर्ग साधु जो कि काले व लाल वस्त्रोँ मेँ था ,हवन कर रहा था.


उस अघोरी के स्थान से युवती पुष्प की लाश को बड़ी मुश्किल से यहाँ तक ला पायी थी.


इस युवती पर एक वैज्ञानिक की जब नजर पड़ी तो...... !?


मानीटर पर इस युवती के चित्र !

इन चित्रोँ को देखते देखते वैज्ञानिक अपने रूम मेँ बैठा बैठा सोंच रहा था कि आज के युग मेँ भी तन्त्र विद्याओँ पर विश्वास ?


"सर!" - कमरे मेँ एक युवती ने प्रवेश किया.


"आओ बेटी ."


"सर,इस युवती का नाम है-संध्या बैरागी........."


"अरे सेरेना,तुमने तो बहुत जल्दी इस युवती के बारे मेँ पता चला लिया."


"सर,यह सन्ध्या बैरागी जिस बुजुर्ग साधु के साथ रह रही है,उस बुजुर्ग साधु को सत्रह साल पहले अर्थात जून सन1993ई0मेँ नदी के सैलाब मेँ बह कर आयी एक गर्भवती महिला मिली थी,जो बेहोश थी.वह महिला तो जिन्दा न बच सकी लेकिन उससे पैदा सन्ध्या बैरागी को बचा लिया गया.."


" संध्या बैरागी नामकरण कैसे...?"


"उसकी माँ के हाथ मेँ लिखा था रजनी बैरागी. इसी आधार पर....."


"सर,क्या हम इस बालक की लाश पर प्रक्टीकल नहीँ कर सकते ? "


"सेरेना,तुम ठीक कहती हो."


सेरेना.....?!

एक पुस्तक जिस पर बड़े बड़े अक्षरोँ मेँ लिखा था -सेरेना.जिस पर ऊपर के एक कोने पर लिखा था-मेरे जीवन के कुछ पल.


नादिरा खानम भविष्य त्रिपाठी के करीब आते हुए बोली-


"सेरेना के आत्म कथा से क्या कुछ मिला आपको?"


भविष्य त्रिपाठी खामोश ही रहा.

"""***"""


सन2017ई
0 के 22जून !


एक युवक भविष्य त्रिपाठी व नादिरा खानम के सामने उपस्थित हुआ.


" गुड मार्निँग सर! गुड मार्निग मैडम!"


"गुड मोर्निग!"


"..आप का स्वागत है.अब आप मेरे मित्र भी हो,हमारी टीम के सदस्य भी हो-पुष्प."


" थैँक यू,सर."


पुष्प कन्नौजिया इधर उधर देखते हुए -" सर "



"पुष्प!लगता है कि अपने आलोक वम्मा सर को चार साल बिस्तर पर और रहना होगा."


"क्या,नौ साल हो गये .अब चार साल और...?!"


"हाँ,सोरी पुष्प,सोरी! लेकिन विश्वास रखो मुझ पर.एक दिन ऐसा आयेगा कि वह चलेँगे बोलेँगे.मुझे चिन्ता है उनके मस्तिष्क की.बस, उनका मस्तिष्क सलामत रहे.उन्हेँ'साइबोर्ग'बना दिया जाएगा"

Thursday, September 16, 2010

/हर हालत मेँअमन की प्यास : हाशिम अंसारी

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From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Fri, 17 Sep 2010 08:44 IST
Subject: <BABARI MSJID PUNRNIRMAN SAMITI>


/हर हालत मेँअमन की प्यास : हाशिम अंसारी

साठ साल से बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक की लड़ाई लड़ने वाले 90वर्षीय बुजुर्ग हाशिम अंसारी द्वारा गंगा जमुनी तहजीब का सम्मान करना सराहनीय है.उनसे हमेँ सीख मिलती है कि हमे अपने मत मेँ तो जीना चाहिए लेकिन मतभेद मेँ नहीँ.हाशिम गंगा जमुनी संस्कृति मेँ पले बढ़े , जहां बारावफात के जुलूस पर हिन्दू फूल बरसाते हैँ और नव रात्रि के जुलूस पर मुसलमान फूलोँ की बारिश करते हैँ.06दिसम्बर1992 के
बलवे मेँ बाहर से आये दंगाइयोँ ने उनका घर जला दिया पर अयोध्या के हिन्दुओँ ने उन्हेँ और उनके परिवार को बचाया.मुआवजा से अपना घर दोबारा बनवाया और एक पुरानी अम्बेसडर कार खरीदी.बेटा मो0 इकबाल इससे अक्सर हिन्दु तीर्थयात्रियोँ को मन्दिरोँ के दर्शन कराते हैँ.हाशिम सभी पार्टी के मुस्लिम नेताओँ व कांग्रेस पार्टी से काफी नाराज हैँ.स्थानीय हिन्दू साधु सन्तोँ से उनके रिश्ते खराब
नहीँ हुए हैँ. हाशिम कहते हैँ कि मैँ सन49 से मुकदमेँ की पैरवी कर रहा हूँ लेकिन आज तक किसी हिन्दू ने एक लफ्ज गलत नहीँ कहा,हमारा उनसे भाईचारा है वे हमको दावत देते हैँ,मैँ उनके यहाँ सपरिवार दावत खाने जाता हूँ.विवादित स्थल के दूसरे दावेदारोँ मेँ से भी कुछ लोगोँ से दोस्ती रही है.


हाशिम पिछले साल हज के लिए मक्का गये तो कई जगह उन्हेँ भाषण देने के लिए बुलाया गया.हाशिम ने वहाँ लोगोँ को बताया कि हिन्दुस्तान मेँ मुसलमानोँ कितनी आजादी है और यह कई मुस्लिम मुल्कोँ से बेहतर है.


वास्तव मेँ अपने मत मेँ जीना अलग बात है तथा भाईचारे मेँ रहना अलग बात है.हमेँ इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि दुनिया के धर्म धर्म नहीँ हैँ वरन व्यक्ति को धर्म की ओर ले जाने वाले पन्थ हैँ . बात है यदि अयोध्या जैसे विवादोँ की,यह सब विवाद बेईमानी व अपने पन्थ से भटकने के कारण होते हैँ.कोई पन्थ का दर्शन हमेँ सत्य से मुकरना नहीँ सिखाता न ही किसी निर्दोष को सताना न ही गैरपन्थ के
लोगोँ का अपमान करना.


जय कुरुआन!जय कुरुशान!!

JAI HO OM...AAMIN ...!

कथा: सन 5012ई0 मेँ सम्कदेल ! < www.akvashokbindu.blogspot.com/>

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Sent: Sun, 12 Sep 2010 21:04 IST
Subject: कथा: सन 5012ई0 मेँ सम्कदेल !


< www.akvashokbindu.blogspot.com/अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु' >

ए बी वी इ कालेज,

मीरानपुर कटरा,

शाहजहाँपुर, उप्र

पृथ्वी से लाखोँ प्रकाश दूर एक धरती -सनडेक्सरन. जहाँ के मूल निबासी तीन नेत्रधारी थे और कद लगभग 11फुट.
इसी धरती पर एक कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ दो व्यक्ति उपस्थित थे.कक्ष मेँ एक बालिका दौड़ती हुई आयी और बोली-

"अण्कल ! अब तो सम्कदेल वम्मा से बात कराओ.वे हाहाहूस पर पहुँच चुके होँगे. "

" छ: घण्टे बाद बात करना तब वे हाहाहूस पर होँगे."


इधर अन्तरिक्ष मेँ एक यान लगभग प्रकाश की गति के उड़ान पर था.

जिसमेँ एक किशोर व एक युवक उपस्थित था.

युवक बोला-
"अब से तीन हजार वर्ष पूर्व लगभग सन 2012-13 मेँ उस समय पृथ्वी पर स्थापित एक देश भारत ,जिसने अपना एक यान अपने कुछ वैज्ञानिकोँ को बैठा कर भेजा था. वह यान जब बापस आ रहा था तो उसमेँ उपस्थित भारतीय वैज्ञानिकोँ की मृत्यु हो गयी. "

"क्योँ,ऐसा क्योँ ?"


".... ... "


"..... ....."


"सर! हाहाहूस पर डायनासोर अस्तित्व मेँ कैसे आये?"


" सब नेचुरल है,प्राकृतिक है."


अन्तरिक्ष यान हाहाहूस नामक आकाशीय पिण्ड के नजदीक आ गया था.
इस हाहाहूस धरती पर पचपन प्रतिशत भाग मेँ जंगल था.शेष भाग पर समुद्र,पठार,बर्फीली पहाड़ियाँ ,आदि थी.


कुछ समय पश्चात !


जब यान हाहाहूस धरती पर आते ही तो....

एक अण्डरग्राउण्ड सैकड़ोँ किमी लम्बी पट्टी पर दौड़ने के बाद अपनी गति को धीमा करते जाने के बाद रुका.

यान से बाहर निकलने के बाद दोनोँ एक रुम मेँ प्रवेश कर गये.

"""" * * * """"


अन्तरिक्ष केन्द्र के गेट तक एक कार से आने बाद दोनोँ आगे पैदल ही चल पड़े.

किशोर बोला - " अण्कल! वो विशालकाय काफी ऊँचा स्तम्भ ....?"


"सम्कदेल! सन 2099ई0 की बात है .यहाँ गुफा के अन्दर उपस्थित अनुसन्धानशाला के कुछ वैज्ञानिक पृथ्वी के उत्तराखण्ड मेँ स्थित टेहरी के समीप जंगल मेँ अपने शोधकार्य मेँ लगे थे कि टेहरी बाँध के विध्वंस ने उन्हेँ मौत की नीँद सुला दिया. भूकम्प के कारण विध्वन्स टेहरी बाँध से ऋषिकेश ,देहरादून और हरिद्वार के साथ साथ अनेक क्षेत्रोँ मेँ तबाही हुई.ऐसे मेँ फिर याद आगयी पर्यावरणविद
सुन्दर लाल बहुगुणा ,मेधा पाटेकर , आदि की...हूँ,सत्तावादी,पूँजीवादी,स्वार्थी लोग क्या समझेँ विद्वानोँ व वैज्ञानिकोँ की भाषा. "

रुक कर पुन :


"हाँ,यह स्मारक है.इस गुफा के अन्दर स्थापित अनुसन्धानशाला के उन वैज्ञानिकोँ की स्मृति मेँ जो टेहरी डैम की तबाही मेँ स्वाह हो गये. "


" अंकल सर ! पृथ्वी का मनुष्य अन्य प्राणियोँ कु अपेक्षा अपने को श्रेष्ठ तो मान बैठाथा लेकिन उसकी श्रेष्ठता कैसी थी? इसका गवाह है-पृथ्वी पर जीवन की बर्बादी. 'अरे,हम क्या कर सकते हैँ? हम मजबूर हैँ.' - कह कर मनुष्य वास्तविकताओँ से मुख तो मोड़ता आया लेकिन उसने पृथ्वी के पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जरा सा भी न सोँचा.

""""" * * * """""


हाहाहूस धरती की यात्रा करने के बाद सम्कदेल वम्मा सनडेक्सरन धरती पर वापस आ गया.


कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ उपस्थित दोनोँ तीन नेत्रधारी व्यक्ति उस तीन नेत्र धारी बालिका के साथ बिल्डिंग से बाहर आकर सम्कदेल वम्मा के यान की ओर बढ़े.दोनोँ व्यक्ति अंकल सर को लेकर बिल्डिँग की ओर बढ़ गये तथा सम्केदल वम्मा उस बालिका के साथ चलते चलते एक पार्क मेँ आ गये.

पार्क मेँ कमर पर शेर की खाल पहने एक विशालकाय नग्न व्यक्ति की प्रतिमा लगी हुई थी.जिसके शरीर पर एक अजगर लिपटा हुआ था और जिसका एक हाथ ऊपर आसमान की ओर उठा था जिसमेँ दूज का चाँद था,दूसरे हाथ मेँ अजगर का मुँह पकड़ मेँ था.

सम्कदेल वम्मा बालिका अर्थात आरदीस्वन्दी को कुछ पत्तियाँ पकड़ाते हुए बोला -
" ये पत्तियाँ मैँ हाहाहूस से लाया हूँ. इनकी विशेषता है कि इन्हेँ खा कर आप बिना भोजन किए पन्द्रह दिन ताजगी व ऊर्जावान महसूस करते हुए बीता सकती हैँ."


आरदीस्वन्दी दो पत्तियाँ खाते हुए-
"इसका स्वाद तो बड़ा बेकार है."


"हाँ,यह तो है."


"और कुछ सुनाओ. "

"और कुछ ?!हाहाहूस स्थित अनुसन्धानशाला से हमेँ एक सूचना प्राप्त हुई ,आज से लगभग 3000वर्ष पूर्व अर्थात 20सितम्बर2002ई0 मेँ दिल्ली से एक समाचार पत्र ने ' धरती पर आ चुके हैँ परलोकबासी ' के नाम से एक लेख प्रकाशित किया था. जो साधना सक्सेना ने लिखा.इस लेख मेँ दिया गया था कि दुनियाँ अर्थात पृथ्वी की अनेक प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ से ऐसे संकेत मिलते हैँ जैसे वहाँ कभी परलोकबासी आए
थे. "

"तो....?!"


" उस वक्त धरतीबासी अनेक अनसुलझी गुत्थी मेँ हिलगे रहे लेकिन वे इस सच्चाई से वाकिफ नहीँ हो पाये कि उस समय कही जाने वाली प्राचीन सभ्यताएं वास्तव मेँ परलोकबासियोँ से परिचित थीँ."


"हाँ, यह तो है."

"उस वक्त एक वैज्ञानिक ने यह अवश्य कहा था ब्रह्मा ,विष्णु,महेश एलियन्स थे."

कथा: सन 5012ई0 मेँ सम्कदेल ! www.akvashokbindu.blogspot.com/

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मीरानपुर कटरा,

शाहजहाँपुर, उप्र

पृथ्वी से लाखोँ प्रकाश दूर एक धरती -सनडेक्सरन. जहाँ के मूल निबासी तीन नेत्रधारी थे और कद लगभग 11फुट.
इसी धरती पर एक कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ दो व्यक्ति उपस्थित थे.कक्ष मेँ एक बालिका दौड़ती हुई आयी और बोली-

"अण्कल ! अब तो सम्कदेल वम्मा से बात कराओ.वे हाहाहूस पर पहुँच चुके होँगे. "

" छ: घण्टे बाद बात करना तब वे हाहाहूस पर होँगे."


इधर अन्तरिक्ष मेँ एक यान लगभग प्रकाश की गति के उड़ान पर था.

जिसमेँ एक किशोर व एक युवक उपस्थित था.

युवक बोला-
"अब से तीन हजार वर्ष पूर्व लगभग सन 2012-13 मेँ उस समय पृथ्वी पर स्थापित एक देश भारत ,जिसने अपना एक यान अपने कुछ वैज्ञानिकोँ को बैठा कर भेजा था. वह यान जब बापस आ रहा था तो उसमेँ उपस्थित भारतीय वैज्ञानिकोँ की मृत्यु हो गयी. "

"क्योँ,ऐसा क्योँ ?"


".... ... "


"..... ....."


"सर! हाहाहूस पर डायनासोर अस्तित्व मेँ कैसे आये?"


" सब नेचुरल है,प्राकृतिक है."


अन्तरिक्ष यान हाहाहूस नामक आकाशीय पिण्ड के नजदीक आ गया था.
इस हाहाहूस धरती पर पचपन प्रतिशत भाग मेँ जंगल था.शेष भाग पर समुद्र,पठार,बर्फीली पहाड़ियाँ ,आदि थी.


कुछ समय पश्चात !


जब यान हाहाहूस धरती पर आते ही तो....

एक अण्डरग्राउण्ड सैकड़ोँ किमी लम्बी पट्टी पर दौड़ने के बाद अपनी गति को धीमा करते जाने के बाद रुका.

यान से बाहर निकलने के बाद दोनोँ एक रुम मेँ प्रवेश कर गये.

"""" * * * """"


अन्तरिक्ष केन्द्र के गेट तक एक कार से आने बाद दोनोँ आगे पैदल ही चल पड़े.

किशोर बोला - " अण्कल! वो विशालकाय काफी ऊँचा स्तम्भ ....?"


"सम्कदेल! सन 2099ई0 की बात है .यहाँ गुफा के अन्दर उपस्थित अनुसन्धानशाला के कुछ वैज्ञानिक पृथ्वी के उत्तराखण्ड मेँ स्थित टेहरी के समीप जंगल मेँ अपने शोधकार्य मेँ लगे थे कि टेहरी बाँध के विध्वंस ने उन्हेँ मौत की नीँद सुला दिया. भूकम्प के कारण विध्वन्स टेहरी बाँध से ऋषिकेश ,देहरादून और हरिद्वार के साथ साथ अनेक क्षेत्रोँ मेँ तबाही हुई.ऐसे मेँ फिर याद आगयी पर्यावरणविद
सुन्दर लाल बहुगुणा ,मेधा पाटेकर , आदि की...हूँ,सत्तावादी,पूँजीवादी,स्वार्थी लोग क्या समझेँ विद्वानोँ व वैज्ञानिकोँ की भाषा. "

रुक कर पुन :


"हाँ,यह स्मारक है.इस गुफा के अन्दर स्थापित अनुसन्धानशाला के उन वैज्ञानिकोँ की स्मृति मेँ जो टेहरी डैम की तबाही मेँ स्वाह हो गये. "


" अंकल सर ! पृथ्वी का मनुष्य अन्य प्राणियोँ कु अपेक्षा अपने को श्रेष्ठ तो मान बैठाथा लेकिन उसकी श्रेष्ठता कैसी थी? इसका गवाह है-पृथ्वी पर जीवन की बर्बादी. 'अरे,हम क्या कर सकते हैँ? हम मजबूर हैँ.' - कह कर मनुष्य वास्तविकताओँ से मुख तो मोड़ता आया लेकिन उसने पृथ्वी के पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जरा सा भी न सोँचा.

""""" * * * """""


हाहाहूस धरती की यात्रा करने के बाद सम्कदेल वम्मा सनडेक्सरन धरती पर वापस आ गया.


कम्पयूटरीकृत कक्ष मेँ उपस्थित दोनोँ तीन नेत्रधारी व्यक्ति उस तीन नेत्र धारी बालिका के साथ बिल्डिंग से बाहर आकर सम्कदेल वम्मा के यान की ओर बढ़े.दोनोँ व्यक्ति अंकल सर को लेकर बिल्डिँग की ओर बढ़ गये तथा सम्केदल वम्मा उस बालिका के साथ चलते चलते एक पार्क मेँ आ गये.

पार्क मेँ कमर पर शेर की खाल पहने एक विशालकाय नग्न व्यक्ति की प्रतिमा लगी हुई थी.जिसके शरीर पर एक अजगर लिपटा हुआ था और जिसका एक हाथ ऊपर आसमान की ओर उठा था जिसमेँ दूज का चाँद था,दूसरे हाथ मेँ अजगर का मुँह पकड़ मेँ था.

सम्कदेल वम्मा बालिका अर्थात आरदीस्वन्दी को कुछ पत्तियाँ पकड़ाते हुए बोला -
" ये पत्तियाँ मैँ हाहाहूस से लाया हूँ. इनकी विशेषता है कि इन्हेँ खा कर आप बिना भोजन किए पन्द्रह दिन ताजगी व ऊर्जावान महसूस करते हुए बीता सकती हैँ."


आरदीस्वन्दी दो पत्तियाँ खाते हुए-
"इसका स्वाद तो बड़ा बेकार है."


"हाँ,यह तो है."


"और कुछ सुनाओ. "

"और कुछ ?!हाहाहूस स्थित अनुसन्धानशाला से हमेँ एक सूचना प्राप्त हुई ,आज से लगभग 3000वर्ष पूर्व अर्थात 20सितम्बर2002ई0 मेँ दिल्ली से एक समाचार पत्र ने ' धरती पर आ चुके हैँ परलोकबासी ' के नाम से एक लेख प्रकाशित किया था. जो साधना सक्सेना ने लिखा.इस लेख मेँ दिया गया था कि दुनियाँ अर्थात पृथ्वी की अनेक प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ से ऐसे संकेत मिलते हैँ जैसे वहाँ कभी परलोकबासी आए
थे. "

"तो....?!"


" उस वक्त धरतीबासी अनेक अनसुलझी गुत्थी मेँ हिलगे रहे लेकिन वे इस सच्चाई से वाकिफ नहीँ हो पाये कि उस समय कही जाने वाली प्राचीन सभ्यताएं वास्तव मेँ परलोकबासियोँ से परिचित थीँ."


"हाँ, यह तो है."

"उस वक्त एक वैज्ञानिक ने यह अवश्य कहा था ब्रह्मा ,विष्णु,महेश एलियन्स थे."

Wednesday, September 15, 2010

14 सितम्बर: काले मैकाले सोँच मेँ हिन्दी

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Sent: Sun, 12 Sep 2010 20:03 IST
Subject: 14 सितम्बर: काले मैकाले सोँच मेँ हिन्दी

"HAPPY HINDI DAY ! भाड़ मेँ जाए हिन्दी . यह दिवस तो हैँ बस , योँ ही जीवन मेँ कुछ चेँजिँग के लिए.अरे ,एडवाँस दिखने के लिए अंग्रेजी के सन्टेनस या वर्ड न बोलो तो काम नहीँ चलता .हिन्दीबासियोँ मेँ अपना रोब जमाने के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल अच्छा है."

ऐसा कहने वाली देशी अंग्रेजी नस्लें मैकाले की औलादेँ है.


" हैलो ब्रादर,हमेँ मैकाले की औलादेँ क्योँ बताते हो?राजा राम मोहन राय,ट्रेवेलियन ,आदि की औलादे क्योँ नहीँ कहते? इनकी बहुलता नहीँ होती तो मैकाले भी क्या करता. घर की भाषा मूली बराबर . " सन
1835 ई0 मेँ काले मैकालोँ के माध्यम से आधार पाकर गोरा मैकाले ने सफलता पायी.अकेला मैकाले तो दिमाग चलाता है,चेक भुनाता है कालोँ के लीडरोँ की मानसिकता का.कालोँ का दिमाग चलने की एक हद है.वह हद कहाँ तक जा सकती है?मैकालोँ के पक्ष के अपोजिट लोगोँ की गुलामी तक,राज ठाकरो की गुलामी तक.या राज ठाकरोँ के अपोजिटोँ की गुलामी तक.हमेँ जिनके पक्ष मेँ भड़कना चाहिए ,नहीँ भड़कते.भड़कना तो हमेँ दबंगोँ
,जातीवादियो,क्षेत्रवादियोँ,आदि के पक्ष मेँ जा कर चाहिए.कानूनविदोँ,समाजसेवियो,विद्वानोँ,आदि के पक्ष मेँ जा कर भड़कने से क्या फायदा ? बस,सेमीनारोँ तक.......


हम भी कहाँ की लेकर बैठ गये?

खैर....

भारत स्वाधीन हुआ,सत्तावादियोँ का सपना साकार हुआ.स्वतन्त्रतासेनानियोँ सपने...?!उन सपनोँ की छोड़ो,हमारे पुरखे स ल्तन काल मेँ भी मौज मेँ थे,मुगलकाल मेँ भी,ब्रिटिश काल मेँ भी और अब आजादी के बाद भी....?!सत्ता का समर्थन करने ,पूँजी का समर्थन करने का मजा ही कुछ और है,दबंगता का समर्थन करने का मजा ही कुछ ओर है?! मैँ भी अभी तक हिन्दी की चर्चा पर नहीँ पहुँच पाया.
भारत स्वाधीन हुआ और 14 सितम्बर 1949ई0 देवनागरी लिपि मेँ लिखित हिन्दी को राष्ट्र भाषा का पद प्रदान कर दिया गया.हालांकि विश्व स्तर पर तक हिन्दी अच्छी हो रही है.विश्व मेँ लगभग 01 अरब लोग हिन्दी को समझ व बोल सकते हैँ लेकिन काले मैकालोँ का क्या कहना ?इन काले मैकालो की नजर मेँ हिन्दी अब भी गंवारोँ की भाषा है.

14 सितम्बर: काले मैकाले सोँच मेँ हिन्दी

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Sent: Sun, 12 Sep 2010 20:03 IST
Subject: 14 सितम्बर: काले मैकाले सोँच मेँ हिन्दी

"HAPPY HINDI DAY ! भाड़ मेँ जाए हिन्दी . यह दिवस तो हैँ बस , योँ ही जीवन मेँ कुछ चेँजिँग के लिए.अरे ,एडवाँस दिखने के लिए अंग्रेजी के सन्टेनस या वर्ड न बोलो तो काम नहीँ चलता .हिन्दीबासियोँ मेँ अपना रोब जमाने के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल अच्छा है."

ऐसा कहने वाली देशी अंग्रेजी नस्लें मैकाले की औलादेँ है.


" हैलो ब्रादर,हमेँ मैकाले की औलादेँ क्योँ बताते हो?राजा राम मोहन राय,ट्रेवेलियन ,आदि की औलादे क्योँ नहीँ कहते? इनकी बहुलता नहीँ होती तो मैकाले भी क्या करता. घर की भाषा मूली बराबर . " सन
1835 ई0 मेँ काले मैकालोँ के माध्यम से आधार पाकर गोरा मैकाले ने सफलता पायी.अकेला मैकाले तो दिमाग चलाता है,चेक भुनाता है कालोँ के लीडरोँ की मानसिकता का.कालोँ का दिमाग चलने की एक हद है.वह हद कहाँ तक जा सकती है?मैकालोँ के पक्ष के अपोजिट लोगोँ की गुलामी तक,राज ठाकरो की गुलामी तक.या राज ठाकरोँ के अपोजिटोँ की गुलामी तक.हमेँ जिनके पक्ष मेँ भड़कना चाहिए ,नहीँ भड़कते.भड़कना तो हमेँ दबंगोँ
,जातीवादियो,क्षेत्रवादियोँ,आदि के पक्ष मेँ जा कर चाहिए.कानूनविदोँ,समाजसेवियो,विद्वानोँ,आदि के पक्ष मेँ जा कर भड़कने से क्या फायदा ? बस,सेमीनारोँ तक.......


हम भी कहाँ की लेकर बैठ गये?

खैर....

भारत स्वाधीन हुआ,सत्तावादियोँ का सपना साकार हुआ.स्वतन्त्रतासेनानियोँ सपने...?!उन सपनोँ की छोड़ो,हमारे पुरखे स ल्तन काल मेँ भी मौज मेँ थे,मुगलकाल मेँ भी,ब्रिटिश काल मेँ भी और अब आजादी के बाद भी....?!सत्ता का समर्थन करने ,पूँजी का समर्थन करने का मजा ही कुछ और है,दबंगता का समर्थन करने का मजा ही कुछ ओर है?! मैँ भी अभी तक हिन्दी की चर्चा पर नहीँ पहुँच पाया.
भारत स्वाधीन हुआ और 14 सितम्बर 1949ई0 देवनागरी लिपि मेँ लिखित हिन्दी को राष्ट्र भाषा का पद प्रदान कर दिया गया.हालांकि विश्व स्तर पर तक हिन्दी अच्छी हो रही है.विश्व मेँ लगभग 01 अरब लोग हिन्दी को समझ व बोल सकते हैँ लेकिन काले मैकालोँ का क्या कहना ?इन काले मैकालो की नजर मेँ हिन्दी अब भी गंवारोँ की भाषा है.

Saturday, September 11, 2010

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Sent: Sun, 12 Sep 2010 00:32 IST
Subject: मुसलमान भाईयोँ:जनहित के पोषक हजरत अली

दुनिया के तमाम धर्मोँ को मेँ धर्म नहीँ मानता, मैँ उन्हेँ धर्म पर जाने का पथ मानता हूँ.असगर अली इंजीनियर के अनुसार-

" हजरत अली का कहना था कि यह दुनिया महज एक ठीकाना भर है,जहां मुसलमानोँ को कुरआन की शिक्षा के मुताबिक अपना रहन सहन रखना चाहिए."


मैँ वर्तमान हिन्दुओँ तो गैरहिन्दुओँ के व्यवहार व सोँच से खुश नहीँ हूँ. मेरी अपनी धार्मिकता व आध्यात्मिकता मेँ धर्मस्थलोँ,जाति,एक विशेष ग्रन्थ,आदि का महत्व नहीँ है.हाँ,इतना मेँ जरूर मानता हूँ कि आदि काल से लेकर और आगे तक धर्म ,अध्यात्म की यात्रा जारी रहने वाली है.वह भी एक दो प्रतिशत व्यक्तियोँ के द्वारा है,शेष तो ढ़ोँग आडम्बर या अवसरवादिता का शिकार हो भीड़ का हिस्सा बन कर
रह जाते हैँ.मेरे लिए तो सनातन यात्रा का एक हिस्सा है-इस धरती पर ऋषियोँ नवियोँ का आना, ऋग्वेद अवेस्ता का आना, गीता ,बाइबिल,कुरआन, सत्यार्थप्रकाश ,आदि का आना .,कणाद,अष्टाव्रक, चाणक्य, प्लेटो,अरस्तु,सुकरात, ओशो,आदि के साथ साथ अनेक अवतारोँ पैगम्बरोँ,दर्शनिको, आदि का आना. हम 'मत' मेँ तो जिएं लेकिन 'मतभेद' मेँ नहीँ.सद्भावना का आचरण सीखे बिना हम धर्म की ओर कैसे बढ़ सकते है ? काफिर कौन
है?क्या कोई मुसलमान काफिर नहीँ हो सकता? क्या सभी गैरमुसलमान काफिर ही हैँ ? आर्य दर्शन के बाद मुझे कोई दर्शन अपनी और आकर्षित करता है तो वह है मुस्लिम दर्शन.आर्य दर्शन का ही अगला चरण क्रमश: मैँ यहुदी ,पारसी,जैन ,बौद्ध ,ईसाई,मुस्लिम दर्शन को मानता हूँ. लेकिन वर्तमान हिन्दुओँ व गैरहिन्दुओँ मेरे इस विचार को शायद ही आप माने ?चलो कोई बात नहीँ,यही तो न कि अपनी ढपली अपना राग.

खैर.....


शुक्रवार,10सितम्बर2010 ई0 !


राष्ट्रीय सहारा के पृष्ठ 10 पर असगर अली इंजीनियर का एक लेख प्रकाशित हुआ था-'जनहित के पोषक हजरत अली'.
एक सराहनीय लेख था.कुछ दिन पूर्व एक अन्य मुस्लिम विचारक का लेख प्रकाशित हुआ था,जिसके अनुसार -'सत्य को छिपाने वाले को काफिर ' बताया गया था.

मुस्लिम भाईयोँ को भी अपने पैगम्बरोँ व कुरआन
के दर्शन की तटस्थ व्याख्या करने वाले ,कम से कम मुस्लिम विचारकोँ को तो पढ़ना ही चाहिए.


वहीँ दूसरी ओर इसी दिन दैनिक जागरण के पृष्ठ 10 पर हृदय नारायण दीक्षित का लेख-' राष्ट्रीय आकांक्षा का सवाल' प्रकाशित हुआ.जिसमेँ एक स्थान पर लिखा था-


" डा बी आर अंबडकर ने' पाकिस्तान आर पार्टीशन आफ इंडिया' मेँ लिखा,मुस्लिम हमलोँ का लक्ष्य लूट या विजय ही नहीँ था, नि : संदेह इनका उद्देश्य मूर्ति पूजा और बहुदेववाद को मिटाकर भारत मेँ इस्लाम की स्थापना भी था' . ....... बाबरी मस्जिद निर्माण पर ढेर सारी टिप्पणियां है .पी कार्नेगी भी ' हिस्टारिकल स्केच आफ फैजाबाद' मेँ मन्दिर की सामग्री से बाबर द्वारा मस्जिद निर्माण का वर्णन करते
हैँ.गजेटियर आफ दि प्राविँस आफ अवध मेँ भी यही बातेँ हैँ. फैजाबाद सेटलमेँट रिपोर्ट भी इन्हीँ तथ्योँ को सही ठहराती है.इंपीरियल गजेटियर आफ फैजाबाद भी मंदिर की जगह मस्जिद निर्माण के तथ्य बताता है. बाराबंकी डिस्ट्रिकट गजेटियर मेँ जन्मस्थान मन्दिर को गिरा कर मस्जिद बनाने का वर्णन है. मुस्लिम विद्वानो ने भी काफी कुछ लिखा है................,...श्रीराम जन्मभूमि का मसला गहन राष्ट्रभाव का
प्रतीक है.इसलिए उभयपक्षी संवाद अपरिहार्य है. आपसी बातचीत से निर्णय करेँ कि यहां क्या बनना चाहिए? "


धर्मस्थलोँ के लिए लड़ना क्या धर्म है?यदि हाँ,तो मैँ ऐसे धर्म का सम्मान नहीँ कर सकता .धर्म का सम्बन्ध निर्जीव वस्तुओँ के सम्मान या अपमान से नहीँ हो सकता ?

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Sent: Sun, 12 Sep 2010 00:32 IST
Subject: मुसलमान भाईयोँ:जनहित के पोषक हजरत अली

दुनिया के तमाम धर्मोँ को मेँ धर्म नहीँ मानता, मैँ उन्हेँ धर्म पर जाने का पथ मानता हूँ.असगर अली इंजीनियर के अनुसार-

" हजरत अली का कहना था कि यह दुनिया महज एक ठीकाना भर है,जहां मुसलमानोँ को कुरआन की शिक्षा के मुताबिक अपना रहन सहन रखना चाहिए."


मैँ वर्तमान हिन्दुओँ तो गैरहिन्दुओँ के व्यवहार व सोँच से खुश नहीँ हूँ. मेरी अपनी धार्मिकता व आध्यात्मिकता मेँ धर्मस्थलोँ,जाति,एक विशेष ग्रन्थ,आदि का महत्व नहीँ है.हाँ,इतना मेँ जरूर मानता हूँ कि आदि काल से लेकर और आगे तक धर्म ,अध्यात्म की यात्रा जारी रहने वाली है.वह भी एक दो प्रतिशत व्यक्तियोँ के द्वारा है,शेष तो ढ़ोँग आडम्बर या अवसरवादिता का शिकार हो भीड़ का हिस्सा बन कर
रह जाते हैँ.मेरे लिए तो सनातन यात्रा का एक हिस्सा है-इस धरती पर ऋषियोँ नवियोँ का आना, ऋग्वेद अवेस्ता का आना, गीता ,बाइबिल,कुरआन, सत्यार्थप्रकाश ,आदि का आना .,कणाद,अष्टाव्रक, चाणक्य, प्लेटो,अरस्तु,सुकरात, ओशो,आदि के साथ साथ अनेक अवतारोँ पैगम्बरोँ,दर्शनिको, आदि का आना. हम 'मत' मेँ तो जिएं लेकिन 'मतभेद' मेँ नहीँ.सद्भावना का आचरण सीखे बिना हम धर्म की ओर कैसे बढ़ सकते है ? काफिर कौन
है?क्या कोई मुसलमान काफिर नहीँ हो सकता? क्या सभी गैरमुसलमान काफिर ही हैँ ? आर्य दर्शन के बाद मुझे कोई दर्शन अपनी और आकर्षित करता है तो वह है मुस्लिम दर्शन.आर्य दर्शन का ही अगला चरण क्रमश: मैँ यहुदी ,पारसी,जैन ,बौद्ध ,ईसाई,मुस्लिम दर्शन को मानता हूँ. लेकिन वर्तमान हिन्दुओँ व गैरहिन्दुओँ मेरे इस विचार को शायद ही आप माने ?चलो कोई बात नहीँ,यही तो न कि अपनी ढपली अपना राग.

खैर.....


शुक्रवार,10सितम्बर2010 ई0 !


राष्ट्रीय सहारा के पृष्ठ 10 पर असगर अली इंजीनियर का एक लेख प्रकाशित हुआ था-'जनहित के पोषक हजरत अली'.
एक सराहनीय लेख था.कुछ दिन पूर्व एक अन्य मुस्लिम विचारक का लेख प्रकाशित हुआ था,जिसके अनुसार -'सत्य को छिपाने वाले को काफिर ' बताया गया था.

मुस्लिम भाईयोँ को भी अपने पैगम्बरोँ व कुरआन
के दर्शन की तटस्थ व्याख्या करने वाले ,कम से कम मुस्लिम विचारकोँ को तो पढ़ना ही चाहिए.


वहीँ दूसरी ओर इसी दिन दैनिक जागरण के पृष्ठ 10 पर हृदय नारायण दीक्षित का लेख-' राष्ट्रीय आकांक्षा का सवाल' प्रकाशित हुआ.जिसमेँ एक स्थान पर लिखा था-


" डा बी आर अंबडकर ने' पाकिस्तान आर पार्टीशन आफ इंडिया' मेँ लिखा,मुस्लिम हमलोँ का लक्ष्य लूट या विजय ही नहीँ था, नि : संदेह इनका उद्देश्य मूर्ति पूजा और बहुदेववाद को मिटाकर भारत मेँ इस्लाम की स्थापना भी था' . ....... बाबरी मस्जिद निर्माण पर ढेर सारी टिप्पणियां है .पी कार्नेगी भी ' हिस्टारिकल स्केच आफ फैजाबाद' मेँ मन्दिर की सामग्री से बाबर द्वारा मस्जिद निर्माण का वर्णन करते
हैँ.गजेटियर आफ दि प्राविँस आफ अवध मेँ भी यही बातेँ हैँ. फैजाबाद सेटलमेँट रिपोर्ट भी इन्हीँ तथ्योँ को सही ठहराती है.इंपीरियल गजेटियर आफ फैजाबाद भी मंदिर की जगह मस्जिद निर्माण के तथ्य बताता है. बाराबंकी डिस्ट्रिकट गजेटियर मेँ जन्मस्थान मन्दिर को गिरा कर मस्जिद बनाने का वर्णन है. मुस्लिम विद्वानो ने भी काफी कुछ लिखा है................,...श्रीराम जन्मभूमि का मसला गहन राष्ट्रभाव का
प्रतीक है.इसलिए उभयपक्षी संवाद अपरिहार्य है. आपसी बातचीत से निर्णय करेँ कि यहां क्या बनना चाहिए? "


धर्मस्थलोँ के लिए लड़ना क्या धर्म है?यदि हाँ,तो मैँ ऐसे धर्म का सम्मान नहीँ कर सकता .धर्म का सम्बन्ध निर्जीव वस्तुओँ के सम्मान या अपमान से नहीँ हो सकता ?

अन ्तरिक्ष yatra !

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Sent: Sat, 11 Sep 2010 13:39 IST
Subject: : अन ्तरिक्ष yatra !

भारत एक सनातन यात्रा का नाम है.पौराणिक कथाओँ से स्पष्ट है कि हम विश्व मेँ
ही नहीँ अन्तरिक्ष मेँ भी उत्साहित तथा जागरूक रहे हैँ.अन्तरिक्ष विज्ञान से
हमारा उतना पुराना नाता है जितना पुराना नाता हमारा हमारी देवसंस्कृति का इस
धरती से.विभिन्न प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ मेँ मातृ देवि के प्रमाण मिले
हैँ.एक लेखिका साधना सक्सेना का कुछ वर्ष पहले एक समाचार पत्र मेँ लेख
प्रकाशित हुआ था-'धरती पर आ चुके है परलोकबासी'.


अमेरिका ,वोल्गा ,आदि कीअनेक जगह से प्राप्त अवशेषोँ से ज्ञात होता है कि वहाँ
कभी भारतीय आ चुके थे.भूमध्यसागरीय सभ्यता के कबीला किसी परलोकबासी शक्ति की ओर
संकेत करते हैँ.वर्तमान के एक वैज्ञानिक का तो यह मानना है कि अंशावतार
ब्रह्मा, विष्णु ,महेश परलोक बासी ही रहे होँ?


मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता मय के लोगोँ को कलैण्डर व्यवस्था किसी अन्य
ग्रह के प्राणियोँ से बतौर उपहार प्राप्त हुई थी. इसी प्रकार पेरु की प्राचीन
सभ्यता इंका के अवशेषोँ मेँ एक स्थान पर पत्थरोँ की जड़ाई से बनी सीधी और
वृताकार रेखाएँ दिखाई पड़ती हैँ.ये पत्थर आकार मेँ इतने बड़े है कि इन रेखाओँ को
हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है.अनुमान लगाया जाता है कि शायद परलोकबासी अपना
यान उतारने के लिए इन रेखाओँ को लैण्ड मार्क की तरह इस्तेमाल करते थे.इसी
सभ्यता के एक प्राचीन मन्दिर की दीवार पर एक राकेट बना हुआ है.राकेट के बीच मेँ
एक आदमी बैठा है,जो आश्चर्यजनक रुप से हैलमेट लगाए हुए है.

पेरु मेँ कुछ प्राचीन पत्थर मिले हैँ जिन पर अनोखी लिपि मेँ कुछ खुदा है और उड़न
तश्तरी का चित्र भी बना है.दुनिया के अनेक हिस्सोँ मेँ मौजूद गुफाओँ मेँ
अन्तरिक्ष यात्री जैसी पोशाक पहने मानवोँ की आकृति बनाई या उकेरी गई है.कुछ
प्राचीन मूर्तियोँ को भी यही पोशाक धारण किए हुए बनाया गया है.जापान मेँ ऐसी
मूर्तियोँ की तादाद काफी है.सिन्धु घाटी की सभ्यता और मौर्य काल मेँ भी कुछ ऐसी

ही मूर्तियाँ गढ़ी गयी थीँ.इन्हेँ मातृदेवि कहा जाता है.जिनके असाधारण पोशाक की
कल्पना की उत्पत्ति अभी भी पहेली बनी हुई है.


ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'

A.B.V. INTER COLLEGE,
KATRA, SHAHAJAHANPUR, U.P.

विज्ञान कथा : वो एलियन्स........

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To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sat, 11 Sep 2010 16:12 IST
Subject: विज्ञान कथा : वो एलियन्स........


सन2007ई0 की जून!
इन्हीँ दिनोँ.....

"इण्डिया ने 1857 क्रान्ति की 150 वीँ वर्षगाँठ मनानी शुरु कर दिया है.अभी नौ महीने और वहाँ इस उपलक्ष्य मेँ कार्यक्रम मनाये जाते रहेँगे.इस अवसर पर नक्सली एक और क्रान्ति की योजना बनाए बैठे हैँ,कुछ और संगठन इस अवसर पर इण्डियन मिशनरी को ध्वस्त कर देना चाहते हैँ. "

"जार्ज सा'ब!आप अमेरीकी विदेश मन्त्रालय मेँ सचिव हैँ,आप जान सकते हैँ अमेरीकी विदेश नीति क्या है? यह विचारणीय विषय है कि आपके राष्ट्रपति का जनाधार अमेरीका मेँ ही नीचे खिसका है."

" हाँ ,राष्ट्रपति जी इसे महसूस करते हैँ."


"हूँ!.....और यह सवाल कभी न कभी उठेगा कि अमेरीकी फौज ने सन 1947 मेँ जिन एलियन्स को अपने अण्डर मेँ लिया था,आखिर उनका क्या हुआ ? "

" यह सब झूठ है , आप............"

" बैठे रहिए , जार्ज सा'ब बैठे रहिए . बौखलाहट मत लाईए."

" हूँ!"


" हमारी अर्थात ब्रिटिश सरकार इस स्थिति का एहसास करने लगी है जब हम पर एलियन्स आक्रमण करेँगे?"


" अपनी कल्पनाएँ अपने पास रखो ."


" तुम एक वास्तविकता को झुठला रहो हो.."

" झुठला क्या रहा हूँ?और तुम.....?! अन्दर ही अन्दर तुम ' सनडेक्सरन' धरती के ग्यारह फुटी तीन नेत्रधारी किस व्यक्ति का अपहरण कर उसे ट्रेण्ड कर 'पशुपति'के रूप मेँ इस धरती पर पेश कर भारतीयोँ की धर्मान्धता को भुनाने का ख्वाब देखते हो. तुम लोगोँ का दबाव कलकत्ता मेँ कुछ पाण्डालोँ को खरीदने का भी है ."



जार्ज उठ बैठा.

" बैठिए-बैठिए . कैसे चल पड़े ? हम आपकी असलियत से अन्जान नहीँ हैँ."


"जनवरी 1990ई0 की उस बैठक का स्मरण है क्या ? हम जानते हैँ कि हमारे भू वैज्ञानिकोँ ने घोषणा की है कि भारतीय प्रायद्वीप की भूमि के अन्दर दरार पड़ रही है जो अरब सागर को मानसरोबर झील से मिला देगी और भारत दो भागोँ मेँ बँट जाएगा. इस दरार को बढ़ाने के लिए हमारे कुछ वैज्ञानिक कूत्रिम उपाय मेँ लगे हुए हैँ. दूसरी ओर समुन्द्र मेँ सुनामी लहरेँ लाने की कृत्रिम व्यवस्था की जा रही है.
अन्तरिक्ष व अन्य आकाशीय पिण्डोँ पर भी अधिकार स्थापित करने की योजना है.."

सब चौँके-"अरे, यह क्या ? "


कमरे का दरबाजा अपने आप से खुल गया.कुछ सेकण्ड के लिए कमरे की लाइटेँ मन्द पड़ गयीँ.


" डकदलेमनस ! "- एक के मुख से निकला.


दरबाजे पर तीन नेत्रधारी ग्यारह फुटी एक व्यक्ति उपस्थित हुआ.जार्ज उसके स्वागत मेँ मुस्कुराते आगे बड़ा.


" आओ, डकदलेमनस!"


डकदलेमनस बोला-" यह नहीँ पूछा,कैसे आना हुआ?"


"सर ! "



डकदलेमनस
फिर बोला-
"तुम पृथु बासी कितने स्वार्थी हो? तुम सब स्वार्थी हम लोगोँ का सहयोग पाकर अपने स्वार्थोँ का भविष्य ही देख रहे हो ?इस धरती पर जीवन को बचाने के लिए मुहिम छेड़ना तो दूर अपनी कूपमण्डूकताओँ मेँ जीते इस धरती पर मनुष्यता तक को नहीँ बचा पा रहे हो. खानदानी जातीय मजहबी राष्ट्रीय भावनाओँ आदि से ग्रस्त हो, मनुष्यता को बीमार कर ही रहे हो. यहाँ से लाखोँ प्रकाश दूर हमारी तथा अन्य
एलियन्स की धरतियो पर अपनी विकृत भेद युक्त सोँच नियति का प्रभाव फैलाने चाहते हो. जून 1947ई 0 मेँ यहाँ आये वे एलियन्स आप लोगोँ ने गायब कर दिए थे लेकिन हम लोगोँ को क्या भुगतना पड़ा? नहीँ जानते हो. इस धरती पर जीवन का जीवन खतरे मेँ है ही .हम लोगोँ का एक आक्रमण ही इस धरती को श्मसान बना देगा ? आखिर वो एलियन्स कहाँ गये? बड़े श्रेष्ठ बनते हो व खुद ही अपने को आर्य कहते हो..? लेकिन तुम लोगोँ के
आचरण व व्यवहार क्या प्रदर्शित कर रहे हैँ.? अपनी फैमिली के मैम्बर की मुस्कान छीन लेते हो,पृथ्वी की प्रकृति ,जीवन की ,अन्तरिक्ष की मुस्कान के लिए क्या करोगे ? तम्हारी धरती जाए भाड़ मेँ,बस हमेँ उन एलियन्स की रिपोर्ट चाहिए.."


"देखिए सर, 1947ई0मेँ हम लोग पैदा भी नहीँ हुए थे."


"उनके उत्तरधिकारी तो तक हो? उनका काम तो आगे बढ़ा रहे हो?"


" सर,यहाँ हमारी कुछ कण्डीशन हैँ जिससे हम मजबूर हो जाते हैँ?"

"एक वर्ष का मौका और दो,इन्सानियत व जीवन के नाते."


" हूँ! इन्सानियत व जीवन के नाते? किस मुख से वकालत करते हो इन्सानियत व जीवन की? अपनी कूपमण्डूकता के बाहर का सोँच ऩहीँ पाते, सिर्फ मतभेद व विध्वन्स के सिवा.एक वर्ष बाद फिर आऊँगा." - डकदलेमनस चल देता है.

"रुकिए सर, इतने दूर से आये हो तो......"


"यह दूरी, मेरे लिए नहीँ है दूरी. तुम लोग इस पर काम करो आखिर वो ए लियन्स कहाँ गये ? एक साल बाद फिर आऊँगा. अगली बार 'न 'का मतलब प्रलयकारी होगा ."

डकदलेमनस कमरे से बाहर हो गया.

फिर-

भविष्य त्रिपाठी कम्प्यूटर मानीटर से अपनी दृष्टि हटाते हुए नादिरा खानम को देखने लगा.


"भविष्य, फिर एक साल बाद.....?!"

अशोक कुमार वर्मा' बिन्दु'
ए बी वी इ कालेज

मीरानपुर कटरा

शाहजहाँपुर,उप्र

Tuesday, September 7, 2010

Sunday, September 5, 2010

Subject: विज्ञान कथा: भविष्य

मै बस इस धरती पर एक अतिथि हूँ.प्रकृति हमेशा हमेँ संवारती रही है.बस,इन्सानोँ की भीड़ मेँ हतास निराश हुआ हूँ.बचपन से ही तन्हा,झेलता दंश.प्रकृति के बीच अध्यात्म,योग,स्वाध्याय हमेँ अपने से जोड़े रखा है.तथाकथित अपनोँ,परिजनोँ ने बस दुख दिया है.उनका मरहम भी हमारे दर्द को बढ़ाता ही रहा.कक्षा पाँच मेँ आते आते कल्पनाओँ, लेखन,शान्ति कुञ्ज व सम्बन्धित अखण्ड ज्योति पत्रिका से सम्बन्ध
स्थापित हो गया.कक्षा 6 मेँ कुरुशान(गीता )हाथ आगयी.कक्षा 12 मेँ आते आते ओशो व स्वेट मार्डन के साहित्य ने प्रभावित किया.लेकिन...

परिवार व परम्परागत समाज मेँ ऊबा हुआ मैँ,मैँ एक अन्तर्मुखी होता गया.ऐसे मेँ मैँ अनचाही शादी करने की गलती कर बैठा.मैँ अपने से ही जैसे अलग हो बैठा.लेखन कार्य या ध्यात्म ही मुझे उत्साह देता आया था लेकिन.....


हाँ,तो भविष्य........
आज सन 2164ई0 की दो अक्टूबर!
आज से लगभग एक सौ छप्पन वर्ष पूर्व इस धरती पर एक वैज्ञानिक हुए थे-ए.पी.जे.अब्दुल कलाम.मुझे स्मरण है कि एक बार उन्होने कहा था कि भविष्य मेँ लोग हमेँ इसलिए याद नहीँ करेँगे कि हम धर्मस्थलोँ जातियोँ के लिए संघर्ष करते रहे थे.
आज सन2164ई0की02अक्टूबर!विश्व अहिँसा दिवस!महात्मा गांधी अब आधुनिक जेहाद अर्थात आन्दोलन के अग्रदूत के रूप मेँ स्थापित हो चुके थे.मैँ एक आक्सीजन वार मेँ विश्राम पर था,जहाँ साउण्ड थेरापी,कलर थेरापी,आदि का भी प्रयोग किया जा सकता था.पाँच मिनट आकसीजन ग्रहण करने के बाद मैँ अपना जेट सूट पहन कर बिल्डिँग की छत पर आ गया.लगभग दस मिनट मेँ मैँ चालीस किलोमीटर हवाई दूरी तय करने के बाद
एक नदी के किनारे स्थित भव्य बिल्डिँग के सामने प्राँगण मेँ पहुँच गया.जहाँ पिरामिड आकर की इमारतोँ की बहुलता थी.
"आईए,त्रिपाठी जी."
"गुड मोर्निँग , खन्ना जी ."
मैँ फिर खन्ना जी के साथ बिल्डिँग के अन्दर आ गया.सभागार मेँ काफी लोग एकत्रित थे.

मैने भी इस सभागार मेँ अपने विचार रखे थे.

कुछ विचार इस प्रकार हैँ--
"कुछ भू सर्वेक्षक बता रहे हैँ क सूरत,कोट,ग्वालियर,आगरा,मुरादाबाद झील,चीन स्थित साचे,हामी,लांचाव,बीजिंग,त्सियांगटाव,उत्तरी दक्षिणी कोरिया,आदि की भूमि के नीचे एक दरार बन कर ऊपर आ रही है,जो हिन्द प्रायद्वीप को दो भागोँ मेँ बाँट देगी तथा जो एक सागर का रुप धारण कर लेगी. इस भौगोलिक परिवर्तन से भारत व चीन की भारी तबाही होगी,जिससे एक हजार वर्ष बाद भी उबरना मुश्किल होगा. .....हूँ!
इस धरती पर मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो अपने को सभी प्राणियोँ मेँ श्रेष्ठ तो मानता है लेकिन अपनी श्रेष्ठता को प्रकृति की ही नजर मेँ स्थापित न रख सका . "
सभा विसर्जन के बाद-
"अरे त्रिपाठी जी,समय होत बलवान.इन्सान की इच्छाओँ से सिर्फ क्या होता है?भाई,संसार की वस्तुएँ वैसे भी परिवर्तनशील हैँ."
मैँ मुस्कुरा दिया.

"प्रकृति पर अपनी इच्छाओँ को थोपना और प्रकृति से हट कर कृत्रिम एवं शहरी जीवन ने प्रकृति कि प्रकृति को तोड़ा ही ,मनुष्य की भी प्रकृति टूटी है.कृत्रिमताओँ मेँ जी जी स्वयं मनुष्य ही कृत्रिम होगया. देख नहीँ रहे हो कि हर साधारण मनुष्य तक का स्वपन हो गया है अब-'साइबोर्ग' बनना अर्थात कम्प्यूटर कृत होना."
खन्ना जी अपने साथ खड़ी एक युवती की ओर देखने लगे.
"खन्ना जी,उधर क्या देख रहे हो?अपने शरीर को ही देखो,हमारे शरीर को ही देखो.हम आप भोजन सिर्फ अपने मस्तिष्क को ऊर्जा देने के लिए करते हैँ .शेष शरीर तो मशीन हो चुका है.हम आप जैसे 'साइबोर्ग' क्या प्रकृति का अपमान नहीँ हैँ?प्रकृति से दूरी बना ,प्रकृति पर अपनी इच्छाएँ थोपकर व क्रत्रिम जीवन स्वीकार कर मनुष्य भी कृत्रिम हो गया,उसका मस्तिष्क ही सिर्फ बचा है."
"""""अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु'
आदर्श इण्टर कालेज
मीरानपुर कटरा
शाहाजहाँपुर उप्र